क्या वन संरक्षण नियम, 2022 देश के आदिवासियों और वनाधिकार क़ानूनों के लिए ख़तरा है
The Wire
आदिवासियों ने कई दशकों तक अपने वन अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी थी, जिसके फलस्वरूप वन अधिकार क़ानून, 2006 आया था. अब सालों के उस संघर्ष और वनाधिकारों को केंद्र सरकार के नए वन संरक्षण नियम, 2022 एक झटके में ख़त्म कर देंगे.
एक तरफ केंद्र सरकार और उनके सहयोगियों ने द्रौपदी मुर्मू को देश का राष्ट्रपति बना दिया है और वो पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति के रूप में चर्चा में है और दूसरी और केंद्र सरकार ने वन संरक्षण नियम, 2022 जारी किए हैं, जिससे देश में पहले से चल रहे आदिवासियों के विस्थापन और बचे-खुचे प्राकृतिक जंगलों के खात्मे की प्रक्रिया और तेज होगी.
28 जून 2022 को केंद्र सरकार ने वन संरक्षण कानून 1980 के अंतर्गत, वन संरक्षण नियम, 2022 की अधिसूचना सार्वजनिक रूप से जारी की. अब इस पर संसद में चर्चा होनी है जो इस समय चल रहे संसद के मानसून सत्र में अपेक्षित है. वन संरक्षण कानून, 2022 के तहत केंद्र सरकार किसी भी निजी कंपनी या संस्था/ठेकेदार को बिना आदिवासियों की अनुमति लिए जंगल काटने की अनुमति दे सकती है.
केंद्र सरकार से अनुमति मिल जाने के बाद यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी होगी कि वो उस जंगल में या उसके आसपास रह रहे लोगों से या जिन लोगों के उस वन भूमि पर वन अधिकार कानून, 2006 के तहत दावे है उनसे अनुमति हासिल करें. लेकिन यदि केंद्र सरकार पहले अनुमति दे देती है तो उसके बाद राज्य सरकार के द्वारा लोगों की अनुमति हासिल करना एक तरह का मजाक नहीं होगा? उनके पास जबरदस्ती लोगों से (आदिवासियों) से अनुमति लेने के अलावा और कोई रास्ता नहीं होगा.
इस नियम के अंतर्गत जब केंद्र सरकार निजी कंपनी या ठेकेदार को जंगल काटने की अनुमति देती है उसी समय वह उनसे प्रतिपूरक वनीकरण (compensatory afforestation) के लिए पूंजी भी ले लेगी जिसका उपयोग बाद में वन विभाग के द्वारा पेड़ लगाने और वनीकरण के लिए किया जाएगा. ऐसा कहा जा रहा है हालांकि ऐसा वास्तव में होगा यह बहुत ही संदेहास्पद है.