क्या राम के नाम पर अयोध्या कॉरपोरेटी विकास की मिसाल बनती जा रही है…
The Wire
राम मंदिर क्षेत्र के पास रसूख़दारों द्वारा ज़मीनों की ख़रीद-फ़रोख़्त के गोरखधंधे में घिरी अयोध्या की एक चिंता यह भी है कि सत्ता समर्थित मूल्यहीन भव्यता के हवाले होती-होती वह राम के लायक भी रह पाएगी या नहीं?
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राम जन्मभूमि/बाबरी मस्जिद विवाद के फैसले के दो साल बाद जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों और उनके परिजनों द्वारा अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर के आस-पास की बेशकीमती भूमि की नियम-कायदों को धता बताकर अंधाधुंध खरीद-फरोख्त के जिस ‘खेल’ का अंग्रेजी दैनिक ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने खुलासा किया है और जिसका संज्ञान लेकर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए और हफ्ते भर में रिपोर्ट तलब की है, उसे लेकर देश के बाकी हिस्सों में लोग कितने भी चकित या विस्मित हों, अयोध्या कतई नहीं है.
इससे पहले श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के ऐसे ही खेल के खुलासे के वक्त भी नहीं ही थी. दरअसल, उसे ऐसी धमाचौकड़ियां झेलते इतना लंबा अरसा बीत गया है कि अब उसे इनमें कुछ भी नया महसूस नहीं होता.
हां, उसे अभी भी याद है कि उसकी राहगुजर में ऐसे खेलों की सबसे पुख्ता नींव 22-23 दिसंबर, 1949 की रात बाबरी मस्जिद में मूर्तियां रखने की साजिश, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने, और तो और, अपने उक्त फैसले में भी ‘गैरकानूनी गतिविधि’ ही करार दिया है, के सूत्रधार फैजाबाद जिले के, जिसका नाम अब अयोध्या कर दिया गया है, तत्कालीन जिलाधिकारी कमिश्नर केकेके नैयर ने रखी थी.
सो भी, जब तत्कालीन सरकार द्वारा उन्हें दंडित करने के लिए फैजाबाद स्थानांतरित किया गया था और उनको सिर्फ नौ महीने चौदह दिन का कार्यकाल नसीब हुआ था. इतने कम वक्त में ही उन्होंने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर अपने व अपनों के लिए भूमि के अनेक टुकड़ों के स्वामित्व हथियाने के ऐसे-ऐसे खेल कर डाले, जिनके विवाद बाद में अरसे तक अदालतों का काम बढ़ाते रहे.