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क्या यूक्रेन में भारतीय छात्र की मौत के लिए सरकारी लापरवाही ज़िम्मेदार है
The Wire
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी रैली में कहा कि दुनिया भर में मानवता की रक्षा के लिए देश का, यानी उसकी सरकार का, मज़बूत होना ज़रूरी है. लेकिन अपनी जिस सरकार को समर्थ व मज़बूत मानकर वे यह बात कर रहे थे, वह मानवता की तो क्या, अपने छात्रों की रक्षा भी नहीं कर पा रही.
पाठकों को याद होगा, वर्ष 2009 के अंत में आई फिल्म निर्देशक राजकुमार हिरानी की बहुचर्चित फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ में एक दृश्य अपनी असफलता से निराश एक छात्र द्वारा की गई आत्महत्या का भी था. उसके बाद के एक दृश्य में अभिनेता आमिर खान के किरदार ने ‘सुसाइड नहीं, मर्डर’ कहकर सवाल उठाया था कि आत्महत्या करने वाले छात्र के गले पर फंदे का जो प्रेशर पड़ा, वह तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट में नजर आ जाएगा, लेकिन उसके दिमाग पर जो प्रेशर पड़ा, उसका क्या?
गत सप्ताह युद्धग्रस्त यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव में मेडिकल अंतिम वर्ष के इक्कीस वर्षीय भारतीय छात्र नवीन शेखरप्पा, जो कर्नाटक से अध्ययनार्थ वहां गए थे, के राशन लेते वक्त रूसी गोलाबारी की चपेट में आ जाने से दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से मारे जाने के सिलसिले में उक्त सवाल को यूं पूछ सकते हैं कि रूसी गोलों ने नवीन को जो घाव दिए, वे तो प्रत्यक्ष हैं, लेकिन उसके अपने देश की सरकार की उन लापरवाहियों का क्या, जिन्होंने नाना अंदेशों के बावजूद उसे वहां रूसी गोलों का शिकार होने के लिए छोड़े रखा?
जिस नरेंद्र मोदी सरकार ने अब अचानक कुंभकर्णी नींद से जागकर वहां फंसे भारतीय छात्रों को इधर-उधर के पड़ोसी देशों के रास्ते निकालने के लिए ‘ऑपरेशन गंगा’ चलाकर उसमें वायुसेना तक को लगा दिया है, और जिसको प्रधानमंत्री देश के सामर्थ्य का प्रतीक बता रहे हैं, वह परिस्थितियों का यथासमय सटीक आकलन करके युद्ध से थोड़ा पहले सक्रिय हो जाती, तो क्या रूसी गोलाबारी असमय नवीन की जान ले पाते?
अगर नहीं तो क्या उसकी मौत के लिए उक्त गोलों से ज्यादा यह सरकार ही जिम्मेदार नहीं है और क्या इसके लिए उसे कठघरे में नहीं खड़ा किया जाना चाहिए? खासकर जब वह बीसियों हजार फंसे छात्रों में से एक-दो हजार को ‘सुरक्षित’ निकालकर अपने मुंह मियां मिट्ठू बन रही है और उनके मुंह से अपना प्रशस्तिवाचन कराकर इवेंट की तरह पेश कर रही है.