क्या भारतीय रिज़र्व बैंक ने उच्च मुद्रास्फीति से निपटने का प्रयास नहीं किया
The Wire
रिज़र्व बैंक का ध्यान जहां देश के ऋण प्रबंधन और विकास को गति देने पर ही केंद्रित है, वहीं महंगाई दिन दूनी-रात चौगुनी रफ़्तार से बढ़ती जा रही है.
यह द रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक को लेकर की जा रही तीन लेखों की शृंखला का तीसरा भाग है. पहला और दूसरा भाग यहां पढ़ें.
नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) किसी केंद्रीय बैंक के एक ऐसे दुर्लभ उदाहरण के तौर पर सामने आया है, जिसने महामारी के बाद के समय में ब्याज दरों में बढ़ोतरी को रोका और बढ़ती मुद्रास्फीति के बावजूद दरों में कटौती का रास्ता खुला रखा.
जहां आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) अपनी नवीनतम ब्याज दर नीति तय करने के लिए 6-8 अप्रैल को मिल रही है, वहीं द रिपोर्टर्स कलेक्टिव (टीआरसी) द्वारा समीक्षा किए गए आधिकारिक दस्तावेजों से पता चलता है कि आरबीआई ने अब तक वित्त मंत्रालय द्वारा मौद्रिक नीति में दिए गए एक अंतर्निहित ‘एस्केप क्लॉज’ (Escape clause) का फायदा उठाते हुए ब्याज दरों को कम रखा है, जो मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत के अनिवार्य लक्ष्य से ऊपर रहने की अनुमति देता है.
इस प्रक्रिया में सरकार कम लागत पर बाजार से पैसा उधार लेने में सक्षम रही है क्योंकि आरबीआई को संप्रभु ऋण के प्रबंधन का भी काम सौंपा गया है.