
क्या बद्रीनाथ धाम जाने वाले रास्ते में है उर्वशी रौतेला का मंदिर? जानिए क्या है इसकी सच्चाई
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पॉडकास्टर सिद्धार्थ कन्नन संग बातचीत में एक्ट्रेस उर्वशी रौतेला ने दावा किया कि उत्तराखंड में पहले से ही मेरे नाम का उर्वशी मंदिर है. चलिए जानते हैं कि आखिर क्यों उर्वशी मंदिर इतना प्रसिद्ध हो रहा है और क्या है इसकी पौराणिक कथा.
हाल ही में एक्ट्रेस उर्वशी रौतेला ने उर्वशी मंदिर से अपने कनेक्शन का दावा किया है. दरअसल, पॉडकास्टर सिद्धार्थ कन्नन संग बातचीत में एक्ट्रेस उर्वशी रौतेला ने दावा किया कि 'उत्तराखंड में पहले से ही मेरे नाम का उर्वशी मंदिर है. आप बद्रीनाथ मंदिर के दर्शन करने जाओगे तो उसके ठीक बाजू में एक मंदिर है, जिसका नाम उर्वशी है और वो मेरे लिए ही डेडिकेटेड है. मेरी बस ये चाह है कि साउथ में भी ऐसा कोई मंदिर हो जो मेरे फैंस के लिए हो.' चलिए जानते हैं कि आखिर क्यों उत्तराखंड का उर्वशी मंदिर इतना प्रसिद्ध हो रहा है और क्या है इसकी पौराणिक कथा.
उत्तराखंड का उर्वशी मंदिर
उर्वशी मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले के बद्रीनाथ धाम के नजदीकी गांव बामणी में स्थित है. उर्वशी मंदिर अप्सरा उर्वशी देवी जी को समर्पित है. बेहद साधारण संरचना वाले इस मंदिर में देवी उर्वशी की मूर्ति स्थापित है. माता का यह मंदिर नीलकंठ पर्वत और नारायण पर्वत की गोद में बना हुआ है. इसके अलावा, इस मंदिर के पास बना हुआ ऋषि गंगा का झरना इस स्थान की सुंदरता को और बढ़ा रहा है. कहते हैं कि देवी उर्वशी को बद्रिकाश्रम में भगवान विष्णु (नारायण) की बाईं जांघ से बनाया गया था जब वह नारायण की भक्ति में लीन थीं. मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
इस मंदिर का संबंध वैदिक काल से है. पद्म पुराण की एक कथा के अनुसार, नर तथा नारायण संसार के कल्याण के लिए हिमालय पर्वत पर जाकर बद्रिकाश्रम तीर्थ में गंगा के निर्मल तट पर तप करने लगे, तो देवराज इंद्र को चिंता होने लगी. उन्हें भय था कि कहीं नर-नारायण उनके स्वर्ग के राजसिंहासन पर अधिकार न कर लें. उन दोनों की तपस्या को भंग करने के लिए देवराज इंद्र ने उन्हें मोहित करने के लिए रंभा आदि श्रेष्ठ अप्सराओं को उनके विशाल आश्रम में भेजा. उसके पश्चात भगवान नारायण ने हंसकर एक फूल से भरी मंजरी ली और अपने जांघ पर एक सुवर्ण अंग वाली तरुणी का चित्र लिखकर उसकी सजीव रचना कर दी. उस सुंदर अप्सरा के दिव्य रूप को देखकर स्वर्ग की अप्सराएं लज्जित हो गईं.
नारायण की जांघ से उत्पन्न उस सुंदरी को देखकर कामदेव मन में सोचने लगा यह सुंदरी मेरी पत्नी रति जैसी ही है. इस प्रकार सोचते हुए अप्सराओं को रोककर नारायण बोले कि, 'यह अप्सरा मेरी जांघ से उत्पन्न हुई है. इसे तुम लोग देवलोक में ले जाओ और इंद्र को दे दो. उनके ऐसा कहने पर वे सभी भय से कांपते हुए उर्वशी को लेकर स्वर्ग में चले गए और उस रूप-यौवन शालिनी अप्सरा को इंद्र को दे दिया. इसके पश्चात भगवान नारायण ने इंद्र को स्पष्ट कर दिया कि उनका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक साधना और तपस्या है, न कि किसी राजपाट की इच्छा. भगवान की जांघ से उत्पन्न इस दिव्य और सुंदर अप्सरा का नाम 'उर्वशी' रखा गया.