क्या उर्दू के प्रचार-प्रसार को ठप करने की सियासी साज़िश चल रही है
The Wire
शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद को उर्दू भाषा के विकास और प्रचार-प्रसार के लिए आवंटित बजट संस्थान की कोई जनरल बॉडी गठित न होने के चलते इस्तेमाल नहीं किया जा सका है. ऐसे में जानकार और भाषाविद सरकार की मंशा को लेकर संदेह जता रहे हैं.
नई दिल्ली: भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत उर्दू के प्रचार-प्रसार एवं विकास के लिए कार्यरत संस्थान राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद (एनसीपीयूएल) चालू वित्त वर्ष के समापन (मार्च) से ठीक पहले अपने मूलभूत उद्देश्यों की पूर्ति और भाषा संबंधित सामान्य गतिविधियों के लिए अनुदान (ग्रांट) जारी करने में ‘नाकारा’ साबित हो रहा है.
दरअसल, केंद्र द्वारा इस संस्थान के जनरल बॉडी के पुनर्गठन के सिलसिले में अभी तक कोई क़दम उठाने में कथित ‘कोताही’ और देरी के कारण इस साल किताबों की थोक ख़रीदारी करने, सरकारी ग़ैर-सरकारी संगठनों को सेमिनार के आयोजन में सहायता देने, पुस्तकों को वित्तीय सहायता प्रदान करने, शिक्षण केंद्रों की व्यवस्था करने और रिसर्च प्रोजेक्ट की सुविधा उपलब्ध कराने जैसे अनेकों महत्वपूर्ण कार्यों के ठप पड़ जाने का खटका अब महज़ अंदेशा नहीं रह गया है.
इस पूरे मामले की जड़ यानी जनरल बॉडी के पुनर्गठन में सरकार की असमर्थता और लापरवाही के सवाल पर आने से पहले बता दें कि ये मामला सबसे पहले उस समय सामने आया जब गत 28 जनवरी को जाने-माने आलोचक और जामिया मिलिया इस्लामिया में उर्दू के शिक्षक कौसर मज़हरी ने एक अपील जारी करते हुए उर्दू आबादी का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया.
उन्होंने इस अपील में विभिन्न मदों के ग्रांट के लिए 6 महीने पहले आयोजित बैठक की चर्चा करते हुए बताया कि अब तक इसको लेकर कोई घोषणा नहीं की गई है.