
क्या इज़राइली यहूदीवाद और भारतीय हिंदुत्व में कोई अंतर नहीं रह गया है
The Wire
शुरुआत में भारत ने नव-उपनिवेशवाद और इज़राइल द्वारा फ़िलिस्तीनी ज़मीन के अतिक्रमण की मुखर तौर पर निंदा की, लेकिन यह विरोध धीरे-धीरे कम हो गया. भारत का रुख कमज़ोर हुआ क्योंकि इज़राइल के साथ आर्थिक और सैन्य संबंध जुड़ गए. अब ये रिश्ते हिंदुत्व व यहूदीवाद की लगभग समान विचारधारा पर फल-फूल रहे हैं.
इजराइल में नेतन्याहू सरकार के 12 साल के शासन का अंत हुआ. इसके तुरंत पहले ग्यारह दिन के लिए इजराइल द्वारा फिलिस्तीनी ग़ाज़ा पट्टी के ऊपर ताक़तवर और ख़ूनी प्रहार किया. यहां तक कि 26 मई को संयुक्त राष्ट्रसंघ (यूएन) की मानवाधिकार परिषद ने इजराइल द्वारा ग़ाज़ा में की गई हिंसा की जांच के लिए एक ‘जांच आयोग’ का गठन भी कर दिया, साथ ही इजराइल के फिलिस्तीन क्षेत्रों में होने वाले मानवाधिकार उल्लंघन को भी जांच के दायरे में डाल दिया. आज़ादी पाने के बाद से ही भारत लगातार फिलिस्तीन के मुद्दे का समर्थन करता रहा, पर वो उन 14 देशों में शामिल हो गया जो मतदान के समय अनुपस्थित रहे. इसका मुख्य कारण भारत की इजराइल के साथ बढ़ती दोस्ती व बढ़ता व्यापार है. इजराइल के हथियार, जासूसी व निगरानी के उपकरण, सामग्री और तकनीक का सबसे बड़ा ख़रीदार भारत है. भारत की वर्तमान सरकार व इजराइल के बीच के संबंधोंं को समझने के लिए हिंदुत्व व यहूदीवाद के बीच के निकट संबंधों को समझना होगा. पिछले महीने का ख़ूनी फ़साद की शुरुआत तब हुई, जब इजराइल की सेना (इजराइली डिफेंस फ़ोर्स) को यह आदेश दिया गया कि पूर्वी जेरूसलम के शेख़ ज़र्रा के फिलिस्तीनी निवासियों को हटाया जाए. यह आदेश रमज़ान के महीने में दिया गया. इस विस्थापन के प्रतिक्रिया में फिलिस्तीन के एक क्रांतिकारी (उग्र) समूह ‘हमास’ ने इजराइल के सीमा के अंदर रॉकेट से हमला किया. इसके बदले में इजराइल ने ग़ाज़ा पट्टी पर ज़बरदस्त जवाबी हमला किया. ग़ाज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि इसमें 232 नागरिक मारे गए. इसमें 66 बच्चे भी थे. हमास के रॉकेट से 12 इसरायली नागरिकों की मौत हुई.More Related News