
क्या आज़ादी की लड़ाई में दलितों, पिछड़ों के योगदान को मिटाने की कोशिश हो रही है?
BBC
साल 2021 को चौरी-चौरा घटना के शताब्दी वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है. इस घटना से जुड़े स्मारक में पुरानी की जगह नई तख़्ती लगाने के बाद विवाद हो गया है. विवाद की वजह क्या है, पढ़िए
चौरी-चौरा घटना के कुछ शहीदों के नामों में फेरबदल और उम्र क़ैद पाने वाले 14 स्वतंत्रता सेनानियों में से सिर्फ़ सवर्ण जाति से जुड़े एक व्यक्ति की प्रतिमा स्मारक में स्थापित किए जाने पर सवाल पूछे जा रहे हैं कि क्या ये स्वतंत्रता संग्राम में दलितों और पिछड़ों के योगदान को धीरे-धीरे मिटाने की कोशिश है?
हालांकि, स्मारक में हुए बदलाव से जुड़े लोगों ने आरोपों को ग़लत बताते हुए कहा है कि 'ग़लती सुधार के लिए आवेदन दिया गया है.'
पुरानी पट्टिका के 'श्री लौटू पुत्र शिवनन्दन कहार' में से 'कहार' शब्द नई तख़्ती से ग़ायब है. वहीं 'श्री रामलगन पुत्र शिवटहल लोहार' अब शहीद रामलगन पुत्र शिवटहल के नाम से दिख रहे हैं.
शहीद लाल मुहम्मद के पिता हकीम फकीर का नाम अब महज़ 'हकीम' रह गया है.
लाल मुहम्मद को लाल अहमद और शिवनन्दन को शिवचरन के तौर पर अंकित करने की 'छूट' भी नई तख़्ती में दिखाई देती है.