
क्या अब अभद्रता पद और सत्ता के लिए ज़रूरी हो चली है
The Wire
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हमारा समय दुर्भाग्य से ऐसा हो गया है कि राजनेता किसी को कुछ भी कह सकते हैं, अभद्रता और अज्ञान से. उनके अनुयायियों की भावनाएं इस अभद्रता से आहत नहीं होतीं.
हम साधारण लोग, नागरिक हैं और अपने रोज़मर्रा के जीवन बिताने में इतने व्यस्त रहते हैं कि कभी थोड़ा रुक-थमकर, ठिठककर यह नहीं सोच पाते कि हमारा साझा भविष्य क्या होने जा रहा है और हम अपनी वर्तमान सचाई के शिकंजे से छूटकर किस तरह का सपना देख सकते हैं.
साधारण नागरिक और लेखक होने के कारण, मुझे लगा कि मैं अपने प्रण आदि आपको बताऊं: यह एक तरह का आत्मोपदेश है. यह अपने लिए है.
पहले पांच प्रण: हम जो हमारा सच है उस पर अडिग रहें और कोई झूठ हमें उस सच से अलग और विचलित न करे. हम हर तरह की घृणा, जो इन दिनों बहुत तेज़ी से धर्मों-संप्रदायों-जातियों आदि के बीच फैलाई-बढ़ाई जा रही है, से अपने को मुक्त करें. जो हमारा विरोधी है, उसका विरोध करें, उससे असहमति व्यक्त करें पर घृणा न करें. किसी भी हालत में हम भौतिक, मानसिक, भाषिक हिंसा का सहारा न लें, अहिंसक रहें. हमें अपने समाज में मौजूद धार्मिक बहुलता को सहज स्वीकार करना चाहिए और किसी भी धर्म का कोई अनादर या अपमान नहीं करना चाहिए.
अब पांच सकार: वो लोग अभाग्यवश वंचित और पीड़ित हैं हमें हर तरह से उनकी मदद करना चाहिए. हमें बच्चों-बूढ़ों-विकलांगों-स्त्रियों-दलितों-आदिवासियों-अल्पसंख्यकों को समानता की दृष्टि से देखना, उनकी हर मुमकिन मदद करना चाहिए. हमें अपनी मातृभाषा और संस्कृति का सम्मान करना और उसे लगाव रखना चाहिए. हमें हमेशा न्याय के पक्ष में खड़ा होना चाहिए और किसी भी तरह के सीधे या परोक्ष अन्याय से अपने को अलग रखना चाहिए. हमें अपने परिवार, पड़ोस और शहर में लगातार सद्भाव बनाए रखने और फैलाने के लिए कोशिश करना चाहिए.