क्या अन्नामलाई तमिलनाडु में फहरा सकेंगे भगवा? बीजेपी को हैं ये 5 उम्मीदें
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तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष अन्नामलाई के चलते पार्टी ने अपने सहयोगी दल अन्नाद्रमुक (AIADMK) से रिश्ते तोड़ लिए. जबकि बीजेपी जानती है कि AIADMK के बिना राज्यसभा में उसका काम नहीं चलने वाला है. आखिर इस भरोसे का कारण क्या है?
तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक (AIADMK) से भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन समाप्त होने के बाद से साऊथ की राजनीति पर चर्चा बढ़ गईं है. तमिलनाडु में बीजेपी का यह आत्मविश्वास यूं ही नहीं है कि अब दक्षिण के इस राज्य में वह छोटे भाई की भूमिका में राजनीति नहीं करना चाहती है. तमिलनाडु विधानसभा में अभी पार्टी के केवल 4 विधायक हैं पर हौसलों का उड़ान 140 वाला दिख रहा है.
तमिलनाडु की राजनीति अब तक अन्नादुरई के आसपास ही होती रही है. कांग्रेस के कमजोर होने के बाद द्रविड़ पार्टियों के इतर यहां राजनीति मुश्किल समझा जाता रहा है.पर अब लगता है कि बीजेपी इस परंपरा को तोड़ रही है. बीजेपी के इस कॉन्फिडेंस के क्या कारण हैं? आइए समझने की कोशिश करते हैं.
1- जातिगत समीकरण में अन्नामलाई फिट बैठते हैं
तमिलनाडु के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई और एआईएडीएमके नेता और पूर्व मुख्यमंत्री ई पलानीस्वामी दोनों एक ही जाति के हैं. ये दोनों गौंडर जाति से हैं जो पिछड़ों में राजनीतिक रूप से मजबूत हैं जैसे उत्तर भारत में यादव-कुर्मी आदि. तमिलनाडु में बीजेपी के दो विधायक इसी समुदाय से आते हैं. अन्नामलाई को सीएम कैंडिडेट बनाकर बीजेपी उत्तर भारत में जिस तरह ओबीसी पार्टी की पहचान बनाई है वैसे ही तमिलनाडु में करना चाहती है. जयललिता मंत्रिमंडल में पूर्व मंत्री नैनार नागेंद्रन को विधायक दल का नेता बनाकर भाजपा ने शक्तिशाली थेवर समुदाय को भी लुभाया है. सात उपजातियों का एक समूह वेल्लार है जो अनुसूचित जाति की श्रेणी से बाहर निकलकर ओबीसी बनना चाहता है. उनका कहना है कि वो किसान हैं और उन्हें ओबीसी आरक्षण चाहिए न कि अनुसूचित जाति का. बीजेपी को इनका फुल सपोर्ट है.बीजेपी की रणनीति है कि अगर उनके साथ पिछड़े, ब्राह्णण और नाडार आ जाएं तो काम बन सकता है. ब्राह्रणों का वोट अभी फिलहाल एआईएडीएम को मिलता रहा है. उम्मीद की जा रही है कि जिस तरह अन्नामलाई ने तमिलनाडु में बीजेपी के पक्ष में बज क्रिएट किया है उसका सीधा लाभ इन जातियों के सपोर्ट के रूप में मिलेगा.
2- बीजेपी की रणनीतिक चाल
अब तक जिस पार्टी का साथ केंद्र सरकार को हर मौके पर मिलता रहा है बिना किसी ठोस वजह से उस पार्टी से अलग होना इतना आसान नहीं रहा होगा. राज्य सभा मे कई कानूनों को पास कराना सरकार के लिए टोढ़ी खीर साबित होता रहा है. ऐसे मौके पर एक समर्थक पार्टी को खुद से अलग करने के पीछे कुछ तो राज होंगे. क्योंकि आमतौर पर जब दो पार्टियां अलग होती हैं तो दूसरी पार्टी के बड़े नेता से मिलने नहीं जाता कोई भी दल. पर यहां बिल्कुल अलग तरीके से हुआ है. अन्नाद्रमुक के नेता बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात करते हैं उसके बाद दोनों पार्टियों का गठबंधन टूट जाता है. यही कारण इसे संदेह की नजर से देखा जा रहा है. पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि जिस तरह ओवैसी की पार्टी से उत्तर भारत के चुनावों में बीजेपी प्रत्याशियों को लाभ मिलता रहा है उसी तरह तमिलनाडु में भी हो सकता है. अगर तमिलनाडु के चुनाव द्रविड़ बनाम सनातन हो जाए तो एआईडीएमके और डीएमके कई जगहों पर लड़ेंगे जिसमें बीजेपी के बाजी मारने के चांस बढ़ जाएंगे. हालांकि राजनीति मे कुछ भी स्पष्ट नहीं होता. बीजेपी का यह दांव उल्टा भी पड़ सकता है.राजनीतिक विश्लेषकों के शंका का कारण एनडीए गठबंधन से अलग होने की घोषणा बेजीपी और एआईएडीएमके और बीजेपी के नेताओं की मीटिंग के बाद होना है.
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