कोविड: सरकारी वादों के बावजूद निकट भविष्य में वैक्सीन की किल्लत का समाधान नज़र नहीं आता
The Wire
केंद्र ने अगस्त से दिसंबर के बीच 2.2 अरब टीके उपलब्ध करवाने की बात कही है, पर यह नहीं बताया कि इनमें से कितने देश में बनेंगे और कितने आयात होंगे. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि टीकों की मौजूदा कमी नवंबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच उत्पादकों को वैक्सीन का प्री-ऑर्डर देने में मोदी सरकार की नाकामी का नतीजा है.
अपनी गफलत भरी वैक्सीन नीति के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अभी और अंतरराष्ट्रीय शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है. देश के 29 राज्यों को अलग-अलग वैश्विक वैक्सीन निर्माताओं से सीधे वैक्सीन खरीदने की इजाजत देने का उनका फैसला- जिसे ज्यादातर लोगों द्वारा अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने के तौर पर देखा जा रहा है- भारत में उल्टा पड़ने वाला है. फाइजर, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन जैसी वैश्विक कंपनियों की भारतीय राज्यों के साथ अलग-अलग बातचीत करने में कोई दिलचस्पी नहीं है. उन्होंने किसी एकल एजेंसी के साथ ही बात करने की अपनी इच्छा जताई है. इसका मतलब यह है कि वे चाहती हैं कि केंद्र सरकार ही भारतीय राज्यों की जरूरतों को जोड़कर उस हिसाब से उनकी तरफ से बातचीत करे. इसका पहला संकेत तब आया जब महाराष्ट्र जैसे राज्यों द्वारा मंगाई गई निविदाओं पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. अमेरिकी दवाई निर्माता कंपनी मॉडर्ना ने पंजाब से कहा कि वह राज्य द्वारा जारी टेंडर पर जवाब देने की अपेक्षा सीधे केंद्र से बात करना पसंद करेगी. वैश्विक टेंडर की प्रक्रिया खरीददारों के बाजार में काफी कारगर होती है, जिसमें बड़े खरीददार सीमित संख्या में होते हैं और विक्रेताओं की संख्या ज्यादा होती है, जो अपने उत्पाद को बेचने के लिए एक दूसरे से प्रतियोगिता करते हैं. लेकिन वैक्सीन के मामले में बाजार का स्वरूप विक्रेता बाजार वाला है, जिसमें 150 से ज्यादा देश अपनी जनता का जितनी जल्दी हो सके टीकाकरण करवाने के लिए टीके की खरीद के लिए व्याकुल हैं.More Related News