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कोविड महामारी ने पहले से हाशिये पर पड़े एलजीबीटीक्यूआई+ समुदाय की पीड़ा को बढ़ा दिया है
The Wire
एलजीबीटीक्यूआई+ अधिकारों के लिए काम करने वाले सहायता समूहों और संगठनों की हेल्पलाइन पर मदद मांगने के लिए आई फोन कॉल की संख्या में हुई कई गुना बढ़ोतरी कोविड-19 महामारी के दौरान समुदाय के लिए बढ़ी चुनौतियों को दिखाती है.
अभिजीत केरल के तिरुवनंतपुरम में बतौर रेडियो जॉकी काम कर रहे थे जब बीते वर्ष मार्च में कोविड-19 महामारी ने भारत में दस्तक दी थी, जिसने सरकार को देशव्यापी लॉकडाउन लगाने के लिए प्रेरित किया था. लॉकडाउन के चलते अभिजीत अपने घर ग्रामीण पत्तनमतिट्टा जिला लौट आए, जहां उनके माता-पिता एक संयुक्त परिवार में दादा-दादी, चाचा और चचेरे भाइयों के साथ रहते हैं.
होमोफोबिक रिश्तेदार और चचेरे भाई-बहनों के साथ रहने के अनुभव को असहनीय बताते हुए अभिजीत कहते हैं, ‘मेरी यौन ‘असामान्यता’ पर बार-बार टिप्पणी करने के अलावा वे मुझे इलाज के लिए एक गुरुजी के पास ले गए. उसने मुझे खाने के लिए कुछ दिया, जिससे मुझे उल्टी हो गई. उन गुरु ने मुझे भरोसा दिलाया कि जो भी ‘बुरी ताकत’ मुझ पर कब्जा कर रही थी और मुझे समलैंगिक बना रही थी, मैं उल्टी के जरिये उसे बाहर निकाल रहा हूं.’
2021 की शुरुआत में अभिजीत वापस तिरुवनंतपुरम गए, जहां उन्हें ‘क्वीर कलेक्टिव’ के सदस्यों का सहारा मिला. उनके काम से प्रेरित होकर अभिजीत ने भी क्वीर समुदाय के उत्थान की दिशा में काम करने का फैसला किया. वे कहते हैं, ‘मैं चाहता हूं कि कोई और उस मानसिक वेदना से न गुजरे जिसे मैंने सहा है.’
परिवार के बुरे बर्ताव से उपजी मानसिक पीड़ा की अभिजीत की कहानी भारत के एलजीबीटीक्यूआई+ समुदाय के सदस्यों के बीच आम है, जिनमें से कई महामारी के दौरान अपने घरों में फंस गए थे और समान रुचि रखने वाले अपने साथियों के सहायता समूहों से दूर कर दिए गए.