कोरोना संकट: ‘सब अच्छा है’ और ‘हेडलाइन’ पाने का रवैया छोड़े सरकार
The Quint
covid crisis: भारत में कोविड-19 महामारी की बारीकियों (जैसे वैक्सीन की कमी, या दूसरी किस्म की कमियों) को देखने की बजाय हमें कुछ मूलभूत बातों की तरफ ध्यान देना चाहिए, anil swarup argues india should focus on some basic things instead of shortcomings
(जैसा कि द क्विंट, ओपेड की असिस्टेंट एडिटर इंदिरा बसु को बताया)भारत में कोविड-19 महामारी की बारीकियों (जैसे वैक्सीन की कमी, या दूसरी किस्म की कमियों) को देखने की बजाय हमें कुछ मूलभूत बातों की तरफ ध्यान देना चाहिए. क्योंकि संदर्भ को समझे बिना, नतीजे निकलाना सही नहीं होगा. सबसे पहले हमें इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा कि इस समय जो कुछ भी हो रहा है, इसकी किसी को उम्मीद नहीं थी.भारत सहित ऐसा किसी देश में कभी नहीं हुआ. मुझे लगता है कि राज्यों को साथ लेकर न चलने, उन्हें शामिल न करने की हमारी आदत ने महामारी के दौरान ज्यादातर समस्याएं खड़ी की हैं. मैं आपको एक उदाहरण देता हूं. ऐसे हालात पहले भी हुए हैं जब हमने राज्यों को अपने भरोसे में लिया, उनसे साथ झगड़े नहीं किए- और संघीय ढांचा इसी को कहते हैं.बेशक, मतभेद होना स्वाभाविक है लेकिन हमे आम सहमति कायम करने की कोशिश करनी चाहिए.मोदी सरकार ने राज्यों के बीच आम सहमति कायम करने की कोशिश पहले भी कीमैं आपको इस सरकार की आम सहमति कायम करने की काबिलियत के उदाहरण देता हूं. इसने ऐसा दो मौकों पर किया. एक में मैं व्यक्तिगत रूप से शामिल था. दूसरे में नहीं. पहला उदाहरण कोयला ब्लॉक की नीलामी का है.इस समय, कोयला उन्हीं राज्यों में पाया जाता है, जहां विपक्षी दलों की सरकारें हैं. लेकिन 2014 में स्थितियां कुछ अलग थीं. पश्चिम बंगाल और ओड़िशा जैसे विपक्षी दलों की सरकारों वाले राज्यों में कोयला हुआ करता था. एक विकल्प तो यह था कि राज्यों का कान उमेंठकर उन्हें किसी तरह राजी कराया जाए. दूसरा विकल्प था कि एक रणनीति के तहत काम किया जाए. अरुण जेटली के नेतृत्व में हमने यही करने का फैसला किया. हमने तय किया कि राज्यों के साथ बातचीत की जाए और उन्हें वैल्यू प्रेपोजिशन की पेशकश की जाए. मतलब, इसमें उनका क्या फायदा होगा.मैं इसे इसलिए स्पष्ट कर रहा हूं क्योंकि मुझे लगता है, हम उसे भूल गए हैं.तो, हमने यह किया कि एक रणनीति तैयार की- उनसे संपर्क किया और हर राज्य सरकार को हमारे प्रेपोजिशन के बारे में समझाया.विपक्षी राज्यों को एक मंच पर कैसे लाया गयाअपनी किताब ‘एथिकल डिलेमा ऑफ अ सिविल सर्वेंट’ में मैंने एक चैप्टर में बताया है कि हमने कैसे ओड़िशा के मुख्यमंत्री से बातचीत की और उन्हें इस बात का भरोसा दिया कि जो किया जा रहा...More Related News