कोरोना संकट: नए नोट छापकर क्या भारत की अर्थव्यवस्था सुधारी जा सकती है?
BBC
कुछ लोग अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अतिरिक्त नोट छापने की सलाह दे रहे हैं लेकिन सरकार इसे लेकर आश्वस्त क्यों नहीं है.
कोविड महामारी की वजह से तबाह हुई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के उपायों पर लगातार चर्चा हो रही है लेकिन जिस उपाय को लेकर सबसे ज्यादा मतभेद है, वह है रिज़र्व बैंक को और नोट छापने चाहिए या नहीं. अर्थव्यवस्था में संतुलन लाने के लिए कई बार मौद्रिक उपाय किए जाते हैं, अधिक नोट छापने को तकनीकी भाषा में 'क्वॉन्टिटेटिव इज़ींग' कहते हैं, मोटे तौर पर इसका मतलब है मुद्रा की उपलब्धता को बढ़ाना. दुनिया के कई देशों में इस तरीके को अपनाया गया है, अमेरिका का फ़ेडरल रिज़र्व इस तरीके का इस्तेमाल हाल के वर्षों में कामयाबी के साथ कर चुका है, लेकिन वेनेज़ुएला और ज़िम्बॉब्वे जैसे देशों में इसके बहुत ही घातक परिणाम हुए हैं. पिछले हफ़्ते देश के शीर्ष बैंकरों में से एक उदय कोटक ने एक इंटरव्यू में कहा था कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर से तबाह हुई अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए नोट छापने की जरूरत है. भारत में नोट छापने की ज़िम्मेदारी रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) की है और इस प्रक्रिया में सरकार की सलाह भी शामिल होती है.More Related News