
कोरोना लॉकडाउन: प्रवासी मज़दूरों के लिए ना घर में काम, ना बाहर, जाएं तो जाएं कहाँ?
BBC
सरकार जितना अनुमान लगा रही है उससे काफ़ी ज़्यादा लोग कोरोना महामारी के दौर में ग़रीबी के गर्त में जा चुके हैं.
जोगिंदर हमाली अहमदाबाद शहर में वर्षों तक खुले में अपने ठेलेगाड़ी पर सोते रहे. उन्हें ज़िंदगी की नाइंसाफ़ी पर हैरानी होती थी. पिछले साल लॉकडाउन से पहले तक वह अहमदाबाद में दिहाड़ी कर रहे थे. लेकिन काम छूट गया तो वो गाँव लौट गए. कुछ महीनों पहले काम की तलाश में हमाली फिर अहमदाबाद लौटे, लेकिन इस साल अप्रैल में जब लॉकडाउन लगा तो एक बार फिर उन्हें मजबूर होकर गाँव का रास्ता पकड़ना पड़ा. उन्हें पता था कि बग़ैर काम और पैसे के शहर में टिके रहना मुश्किल होगा. हमाली यूपी के रहने वाले हैं. गांव में उनके पास एक बीघा से भी कम ज़मीन है. पूरे परिवार में दस लोग हैं. फोन पर बात करते हुए उन्होंने कहा, "हमें मुश्किल से कभी राशन मिलता है. ग़रीबों को अक्सर इससे महरूम रखा जाता है. पिछली बार एक दफ़ा तीन लोगों के लिए 25 किलो राशन मिला था. लेकिन परिवार में और भी तो लोग हैं. हमने शिकायत भी की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई."More Related News