कोरोना: जेलों से 'राजनीतिक' और विचाराधीन कैदियों की रिहाई होनी चाहिए?
BBC
केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन को कैद में कोरोना होने के बाद से कई आंदोलनकारियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रिहा करने की माँग उठ रही है.
"मेरी माँ पिछले पांच महीनों से तिहाड़ जेल में हैं. अप्रैल में वो कोविड पॉज़िटिव हो गईं. बहुत कोशिश के बाद भी उन्हें बेल नहीं मिली. तीन हफ्ते तक जेल में ही आइसोलेशन में रखने के बाद वो वापस अपने बैरक में आ गई हैं. आखिरी बार जब मेरी उनसे बात हुई तो उन्हें यह नहीं पता था कि वो कोरोना नेगेटिव हो चुकी हैं या नहीं." ये बताते वक़्त अंजलि के चेहरे पर चिंता साफ़ दिख रही थी. पिछले पांच महीने में दो मुलाक़ातों और चंद आधे-अधूरे फ़ोन कॉल्स के सहारे ही वो अपनी माँ का हाल जान पाई हैं. उनकी माँ रुक्मिणी को दिसंबर 2020 में दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने गिरफ्तार किया था और तब से ही वो दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं. रुक्मिणी को एक आर्थिक अपराध के मामले में सह-अभियुक्त के तौर पर गिरफ्तार किया गया है. दोषी पाए जाने पर उन्हें 10 साल तक की सज़ा हो सकती है. अंजलि कहती हैं कि कोरोना महामारी की वजह से वो अपनी माँ के लिए बहुत चिंतित हैं. वे कहती हैं, "जब मुझे अप्रैल में फ़ोन आया तो सिर्फ़ इतना बताया गया कि आपकी माँ को कोविड हो गया है. यह सुनकर मैं बहुत घबरा गई. जिन्होंने कॉल किया था उनके पास ज़्यादा जानकारी नहीं थी. उन्होंने कहा कि बीमारी के कुछ लक्षण दिख रहे हैं पर वो गंभीर नहीं हैं. माँ हाई रिस्क कैटेगरी में आती हैं क्योंकि उन्हें दमा है."More Related News