कोटे के अंदर कोटा स्वीकार... SC के फैसले से इन राज्यों में होगा नई राजनीति का उभार
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सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने 6:1 के बहुमत से फैसला देते हुए कहा कि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) में कोटे के अंदर कोटा बनाकर आरक्षण दिया जा सकता है. ऐसे में समझते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का राज्यों की सियासत पर क्या असर हो सकता है? और अलग-अलग राज्यों में दलित-आदिवासियों की आबादी कितनी है?
देश में अभी अनुसूचित जाति (एससी) को 15% और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को 7.5% आरक्षण मिलता है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एससी और एसटी की जातियों के इसी 22.5% के आरक्षण में ही राज्य सरकारें एससी और एसटी के कमजोर वर्गों का अलग से कोटा तय कर सकेंगी.
मान लीजिए कि किसी राज्य में एससी की A, B, C और D जातियों को आरक्षण मिलता है. अब सरकार C और D जातियों के लिए इसी 15% कोटे से एक कोटा तय कर सकती हैं. यही एसटी के 7.5% आरक्षण में लागू होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कोटे के अंदर कोटे की अनुमति राज्य सरकारों को दे दी है. हालांकि, अपने फैसले में उसने ये भी साफ किया है कि राज्य अपनी मर्जी और राजनीतिक महत्वाकांक्षा के आधार पर फैसला नहीं ले सकते. अगर ऐसा होता है तो उनके फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है.
अगर कोई राज्य किसी जाति को कोटे के अंदर कोटा देती है तो उसे साबित करना होगा कि ऐसा पिछड़ेपन के आधार पर ही किया गया है. ये भी देखा जाएगा कि किसी एससी-एसटी के कुल आरक्षण का उसके किसी एक वर्ग को ही 100% कोटा न दे दिया जाए.
फैसले का सियासी असर
भारत की राजनीति जाति पर बहुत ज्यादा टिकी है. पूरब से पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक... जातियों की ही बात होती है. अभी ओबीसी की राजनीति पर चर्चा तेज हो गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दलित-आदिवासी की सियासत भी तेज होने की संभावना है. माना जा रहा है कि इस फैसले के बाद अब दलित-आदिवासी एक समूह नहीं रह जाएगा. उसके अंदर ही अलग-अलग वर्ग खड़े हो जाएंगे और फिर उससे जुड़ी नई तरह की राजनीति शुरू हो जाएगी.
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