
कैफ़ी आज़मी के लिए जब एक हसीना ने तोड़ी सगाई
BBC
मशहूर शायर कैफ़ी आज़मी की आज 103वीं जयंती है. रेहान फ़ज़ल बता रहे हैं उनकी ज़िंदगी से जड़ी कुछ घटनाओं के बारे में.
साल था 1947. भारत की आज़ादी का साल.
हैदराबाद के एक मुशायरे में जब कैफ़ी आज़मी अपनी एक नज़्म सुना रहे थे तो उसे सुनाने के उनके अंदाज़ ने एक हसीना को किसी और के साथ अपनी मंगनी तोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था.
उस हसीना ने उस रोज़ सफ़ेद हैंडलूम का कुर्ता, सफ़ेद सलवार और इंद्रधनुषी रंग का दुपट्टा पहन रखा था. लंबे क़द के दुबले पतले, पुरकशिश नौजवान अतहर अली रिज़वी उर्फ़ कैफ़ी आज़मी ने उस दिन अपनी घनगरज आवाज़ में जो नज़्म सुनवाई थी, उसका शीर्षक था 'ताज'.
बाद में वो हसीना शौकत उनकी पत्नी बनी. शौकत आज़मी ने उस मुशायरे को याद करते हुए बीबीसी को बताया, "मुशायरा ख़त्म हुआ तो लोगों की भीड़ कैफ़ी, अली सरदार जाफ़री और मजरूह सुल्तानपुरी की तरफ़ ऑटोग्राफ़ बुक ले कर लपकी."