
केन-बेतवा लिंक: विकास की बाट जोहते ग्रामीण अब विस्थापन के मुहाने पर खड़े हैं…
The Wire
मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी केन-बेतवा लिंक परियोजना के तहत मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िले में 10 गांवों को विस्थापित किया जाना है. ग्रामीणों का कहना है कि पहले से ही तमाम बुनियादी सुविधाओं के बिना चल रही उनकी ज़िंदगी को यह प्रोजेक्ट यातनागृह में तब्दील कर देगा. उन्हें यह डर भी है कि तमाम अन्य परियोजनाओं की तरह उन्हें उचित मुआवज़ा नहीं मिलेगा.
(इंटरन्यूज़ के अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क के सहयोग से की गई यह रिपोर्ट केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना पर छह लेखों की शृंखला का अंतिम भाग है. पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा व पांचवा भाग यहां पढ़ सकते हैं.) छतरपुर /पन्ना: अमना अहिरवाल अब 70 साल के हो चुके हैं. जब दिल्ली में बैठी सरकार देश को विश्वगुरु बनाने का ख्वाब दिखा रही है, वे अब भी अपने गांव में सड़क और मोबाइल नेटवर्क पहुंचने का सपना देख रहे हैं. पन्ना टाइगर रिजर्व के भीतर उनकी एक छोटी-सी झोपड़ी है, बारिश की बूंदे टप-टप करके उनकी चारपाई को पूरी तरह गीला कर देती है, वे अपनी फटी हुई लुंगी को समेटते हुए दोनों पैरों को करीब लाकर एक कोने में बैठ जाते हैं और अपने अतीत में झांकने लगते हैं. उस जमाने में उन्हें 50 पैसे मजदूरी मिलती थी. तब तो अधिकतर आबादी की यही स्थिति थी. लेकिन धीरे-धीरे लोगों की आय रुपये से सैकड़ों, हजारों और लाखों में पहुंच गई, लेकिन अहिरवाल के लिए कुछ भी नहीं बदला. आज यदि उन्हें कभी हल्का बुखार हो जाता है तो उसकी दवा के लिए भी करीब 15 किलोमीटर पथरीले रास्तों से चलकर जाना होता है. विकास उनके गांव तक पहुंच पाया नहीं और अब तो उनके सिर से छत भी छिनने का खतरा मंडरा रहा है.More Related News