
केन-बेतवा लिंक: नए अध्ययन के बिना डेढ़ दशक पुराने आंकड़ों के आधार पर दो राज्यों में हुआ क़रार
The Wire
विवादित केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट के समझौते को अंतिम रूप देते समय केन नदी के जलस्तर का पता लगाने के लिए नया अध्ययन कर आंकड़ों को अपडेट करने की ज़रूरत महसूस की गई. लेकिन एक अधिकारी के निर्देश पर पुराने डेटा को बरक़रार रखा गया और अंत में इसी आधार पर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने क़रार पर दस्तख़त कर दिए.
(इंटरन्यूज़ के अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क के सहयोग से की गई यह रिपोर्ट केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना पर छह लेखों की शृंखला का तीसरा भाग है. पहला और दूसरा भाग यहां पढ़ सकते हैं.) नई दिल्ली: किसी भी परियोजना के चलते पर्यावरण एवं जनमानस को नुकसान होने की संभावना को ध्यान में रखते हुए उस प्रोजेक्ट की उपयोगिता एवं उसके प्रभावों पर स्वतंत्र रूप से गंभीर अध्ययन कराने की मांग की जाती रही है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि इससे पड़ने वाले प्रभावों को कम किया जा सके व उससे हुई क्षति की उचित भरपाई हो सके. हालांकि जिस कार्य को करने में विशेषज्ञ महीनों मेहनत करते हैं, उसे प्रशासन के अधिकारी लीपापोती करते हुए एक फोन कॉल करके कर सकते हैं. ऐसा काम मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी और ‘विनाशकारी’ का तमगा हासिल कर चुकी केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना को लेकर किया गया था, जिस पर इसी साल मार्च महीने में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच क़रार पर दस्तखत किए गए हैं. इस परियोजना के एग्रीमेंट को अंतिम रूप देने के दौरान बीच में ये महसूस किया गया था कि केन नदी पर फिर से अध्ययन कर इसके आंकड़ों को अपडेट करने की जरूरत है, लेकिन महज एक अधिकारी के निर्देश पर पुराने डेटा को ही बरकरार रखा गया और आगे चलकर सरकार ने इस पर डील साइन कर दी गई.More Related News