![केंद्र के फैसले का स्वागत करती हूं, लेकिन आफ़स्पा को निरस्त किया जाना चाहिए: इरोम शर्मिला](https://thewirehindi.com/wp-content/uploads/2017/02/Irome-Sharmila-1.jpg)
केंद्र के फैसले का स्वागत करती हूं, लेकिन आफ़स्पा को निरस्त किया जाना चाहिए: इरोम शर्मिला
The Wire
मानवाधिकार कार्यकर्ता शर्मिला ने कहा है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है. हम इस औपनिवेशिक क़ानून को कब तक बरक़रार रखेंगे? उग्रवाद से लड़ने के नाम पर करोड़ों रुपये बर्बाद किए जाते हैं, जिनका उपयोग पूर्वोत्तर के समग्र विकास के लिए किया जा सकता है. आफ़स्पा प्रगति की राह में एक रोड़ा है.
कोलकाता: सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम (आफस्पा) को निरस्त करने की मांग को लेकर 16 साल तक भूख हड़ताल पर रहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने असम, नगालैंड और मणिपुर में इस कानून के दायरे में आने वाले क्षेत्रों की संख्या कम करने के केंद्र के फैसले का स्वागत किया है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि यह ‘कठोर, औपनिवेशिक कानून’ पूरी तरह से वापस लिया जाना चाहिए.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बीते 31 मार्च को पूर्वोत्तर के उन तीन राज्यों में ‘अशांत क्षेत्रों’ की संख्या में कमी की घोषणा की, जहां सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम, 1958 लागू है.
गृह मंत्रालय के अनुसार, नगालैंड के सात जिलों के 15 पुलिस थाना क्षेत्रों, मणिपुर के छह जिलों में 15 पुलिस थाना क्षेत्र और असम के 23 जिलों में पूरी तरह से और एक जिले में आंशिक रूप से आफस्पा हटाया जा रहा है.
‘मणिपुर की लौह महिला’ के रूप में मशहूर शर्मिला ने आफस्पा को ‘दमनकारी कानून’ करार दिया और कहा कि यह कभी भी उग्रवाद से निपटने का समाधान नहीं रहा है.