
कुरान में जिक्र होने से हिजाब आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं बन जाएगी...सुप्रीम कोर्ट में SG तुषार मेहता ने दी दलील
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हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को भी अहम सुनवाई हुई है. सुनवाई के दौरान एसजी तुषार मेहता ने साफ कर दिया है कि कुरान में जिक्र होने से हिजाब आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं बन सकती है. उन्होंने ये भी कहा है कि कई इस्लामिक देशों में महिलाएं अब हिजाब का विरोध कर रही हैं. बुधरवा को भी इस मामले में सुनवाई जारी रहने वाली है.
कर्नाटक हिजाब विवाद को लेकर मंगलवार को भी सुप्रीम कोर्ट में तीखी बहस हुई. बहस के दौरान एसजी तुषार मेहता ने कई उदाहरणों के जरिए साबित करने का प्रयास किया कि हिजाब कोई आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है. उनकी तरफ से यूनिफॉर्म और अनुशासन पर भी लंबी दलीलें दी गईं. कोर्ट के सवाल-जवाब भी आते रहे, लेकिन मेहता अपनी दलीलों पर कायम रहे.
धार्मिक पहचान वाली पोशाक स्कूल में नहीं- SG
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मान लीजिए कि किसी ने मेरे भाई को मार डाला और मेरा मानना है कि जब तक मैं बदला नहीं लेता तब तक वह शांति से नहीं रह सकता. इसका मतलब हत्या आवश्यक धार्मिक अभ्यास का जरूरी हिस्सा भी नहीं हो सकता है. मेरे लिए यह धर्म का मामला नहीं है, यह सभी छात्रों के बीच एक समान आचरण का मामला है. जब मैं धर्मनिरपेक्ष शिक्षा में हूं तो धार्मिक पहचान दिखाने वाली पोशाक नहीं हो सकती.
मेहता ने कहा कि वेदशाला और पाठशाला दोनो अलग हैं. वेदशाला में केसरिया पटका पहन सकते हैं, मदरसे में गोल टोपी. लेकिन धर्म निरपेक्ष स्कूल में यूनिफॉर्म का पालन करना अनुशासन है. अगर हम बच्चों की शिक्षा के लिए सेक्युलर इंस्टिट्यूट्स चुनते हैं तो हमे नियमों का पालन करना होगा. एसजी ने पुलिस बलों में दाढ़ी रखने या फिर बाल बढ़ाने पर प्रतिबंध के संबंध में एक अमेरिकी कोर्ट के फैसले को जिक्र किया. एक वकील टोपी पहनकर अदालत में यह कहते हुए आता है कि यह ऑपरेशन थंडरस्टॉर्म का हिस्सा है, जज आपत्ति करता है. इस तरह के एक विनियमित मंच में कोर्ट द्वारा आयोजित प्रतिबंध को बरकरार रखा जाएगा यदि यह उचित है.
अनुशासन किसी संस्थान को देखकर नहीं आता- मेहता
एसजी तुषार मेहता ने कहा की कुछ वैसे ही जब कोविड संकट काल में वर्चुअल सुनवाई के समय जब कुछ वकील.बनियान पहनकर सुनवाई में बहस करने आए तो अदालत ने उनको यूनिफॉर्म और संस्थान की गरिमा के मुताबिक तय ड्रेसकोड फॉलो करने को कहा था. कोर्ट ने उनको थोड़ी छूट दी थी लेकिन अनुशासन की बात कही थी. अनुशासन किसी संस्थान को देखकर नहीं आता. बल्कि ये सार्वकालिक सार्वदेशिक होता है.

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