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किसान आंदोलन के एक साल में मैंने क्या देखा
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पिछले साल नवंबर के आखिरी हफ्ते में जब पंजाब के किसानों ने दिल्ली कूच करने का ऐलान किया तो ये आंदोलन सबकी नज़र में आया. तभी से लगातार बतौर पत्रकार इस आंदोलन के अलग-अलग फेज़ को ना सिर्फ़ मैंने कवर किया बल्कि उतार-चढ़ाव से भरे आंदोलन की तस्वीरों का गवाह भी बना.
दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन के एक साल पूरे हो गए. तीन कृषि कानूनों के खिलाफ ये आंदोलन देश में अब तक चले सबसे लंबे आंदोलनों में से एक है. पिछले साल नवंबर के आखिरी हफ्ते में जब पंजाब के किसानों ने दिल्ली कूच करने का ऐलान किया तो ये आंदोलन सबकी नज़र में आया. तभी से लगातार बतौर पत्रकार इस आंदोलन के अलग-अलग फेज़ को ना सिर्फ़ मैंने कवर किया बल्कि उतार-चढ़ाव से भरे आंदोलन की तस्वीरों का गवाह भी बना. किसानों के दर्द को देखा, किसान नेताओं और सरकारों की बातचीत के अंदर की ख़बर भी रखी और उस दौर का गवाह भी बना जब आंदोलन कमज़ोर पड़ा और दोबारा मजबूती के साथ खड़ा भी हो गया. मौसमी उतार-चढ़ाव की चुनौतियों के साथ-साथ, कोविड जैसी बीमारियों ने भी इस आंदोलन के सामने ऐसी चुनौतियां पेश कीं जिसने किसानों और आंदोलनकारियों की हिम्मत की परीक्षा ली. लेकिन किसान आंदोलन अनवरत चलता रहा, कभी किसान बॉर्डर छोड़कर घर चले गए, तो कभी उतनी ही संख्या में दोबारा आकर ये भी दिखाया कि संख्या कम होने का मतलब आंदोलन की आग ठंडी हो गई, ऐसा ज़रुरी नहीं है.
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