किशोर न्याय अधिनियम में संशोधन से मिलेगा अपराधियों को संरक्षण: चार राज्यों के बाल अधिकार निकाय
The Wire
दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और चंडीगढ़ के बाल अधिकार संरक्षण आयोगों ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से जेजे एक्ट में हुए संशोधन को अधिसूचित न करने का आग्रह किया है. संशोधन में बाल शोषण संबंधी मामलों में कुछ अपराधों को ग़ैर संज्ञेय के रूप में वर्गीकृत किया गया है.
नई दिल्लीः किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 (जेजे एक्ट) में मामूली, लेकिन संभावित रूप से प्रभावशाली संशोधन पर चार राज्यों एवं एक केंद्रशासित प्रदेश के बाल अधिकार निकायों ने आपत्ति जताई है. भारत में अनुमानित रूप से 3,00,000 बच्चे भीख मांगते हैं.’ हालांकि, कुछ संगठनों का दावा है कि यह संख्या अधिक है. अनुपमा कौशिक ने ‘बच्चों के अधिकारः भारत में सार्वजनिक स्थानों पर बाल भिखारियों की केस स्टडी’ शीर्षक से 2014 के एक शोध में कहा कि वार्षिक तौर पर लगभग 44,000 बच्चे गैंग के हत्थे चढ़ जाते हैं. हालांकि, इन संशोधनों के बाद मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना भीख मंगवाने के मकसद से बच्चों के इस्तेमाल को लेकर एफआईआर या जांच नहीं हो पाएगी.’
दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और चंडीगढ़ के बाल अधिकार संरक्षण आयोगों ने केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से संशोधन अधिनियम 2021 को अधिसूचित करने से परहेज करने का आग्रह किया, जो, आयोगों के हिसाब से, बाल शोषण के मामलों में कुछ गंभीर अपराधों को गैर संज्ञेय के रूप में वर्गीकृत करता है.
जेजे एक्ट 2015 में कई बदलाव करने के लिए 2021 में संशोधन किया गया था. इन संशोधनों को राष्ट्रपति की सहमति मिल गई और इसे अधिसूचित भी किया गया. हालांकि, अभी इसके क्रियान्वयन का आदेश नहीं दिया गया.
बाल अधिकार निकायों ने जेजे अधिनियम 2015 की धारा 86 (2) में हुए एक संशोधन का उल्लेख किया, जिसने गंभीर प्रकृति के अपराधों को संज्ञेय से गैर संज्ञेय बना दिया गया. यह संशोधन पुलिस को बिना वॉरंट आरोपी को गिरफ्तार करने और अदालत की मंजूरी के बिना जांच शुरू करने से रोकेगा.