काफी दिलचस्प है अखाड़ों का लोकतंत्र! 13 सौ साल से चली आ रही परंपरा
AajTak
बौद्ध धर्म की लोकप्रियता की वजह से सनातन परंपरा के लुप्त होते और उस पर भी विधर्मी आक्रांताओं के हमलों से उत्पन्न संकट को भांप कर शंकराचार्य ने संन्यासियों की फौज धर्म के प्रचार और अधर्म के नाश के लिए बनाई.
निरंजनी अखाड़े से संबद्ध प्रयागराज के बाघंबरी मठ के महंत नरेंद्र गिरि की मौत ने अखाड़ों पर चर्चा फिर तेज कर दी है. लोग सनातन धर्म की परंपरा में अखाड़ों की परंपरा, व्यवस्था, पदानुक्रम और तरह-तरह की मान्यताएं सब कुछ जानना चाहते हैं. सनातन धर्म में संत, संन्यास और वैराग्य की परंपरा तो सिद्ध और नाथों के काल से मिलती है लेकिन अखाड़ों की परंपरा आदि जगद्गुरु शंकराचार्य के समय से शुरू होती है.
सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह रही कि खींवसर को तीन क्षेत्रों में बांटकर देखा जाता है और थली क्षेत्र को हनुमान बेनीवाल का गढ़ कहा जाता है. इसी थली क्षेत्र में कनिका बेनीवाल इस बार पीछे रह गईं और यही उनकी हार की बड़ी वजह बनी. आरएलपी से चुनाव भले ही कनिका बेनीवाल लड़ रही थीं लेकिन चेहरा हनुमान बेनीवाल ही थे.
देश का सबसे तेज न्यूज चैनल 'आजतक' राजधानी के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में तीन दिवसीय 'साहित्य आजतक' महोत्सव आयोजित कर रहा है. इसी कार्यक्रम में ये पुरस्कार दिए गए. समारोह में वरिष्ठ लेखकों और उदीयमान प्रतिभाओं को उनकी कृतियों पर अन्य 7 श्रेणियों में 'आजतक साहित्य जागृति सम्मान' से सम्मानित किया गया.
आज शाम की ताजा खबर (Aaj Ki Taza Khabar), 23 नवंबर 2024 की खबरें और समाचार: खबरों के लिहाज से शनिवार का दिन काफी अहम रहा है. महाराष्ट्र में नतीजे आने के बाद सूत्रों की मानें तो एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री पर पर अपना दावा ठोका है. सीएम योगी ने यूपी उपचुनाव के नतीजों को पीएम मोदी के नेतृत्व की जीत बताया है.
हिंदी साहित्य के विमर्श के दौरान आने वाले संकट और चुनौतियों को समझने और जानने की कोशिश की जाती है. हिंदी साहित्य में बड़े मामले, संकट और चुनने वाली चुनौतियाँ इन विमर्शों में निकली हैं. महत्वपूर्ण विचारकों और बुद्धिजीवियों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं. हिंदी साहित्यकार चन्द्रकला त्रिपाठी ने कहा कि आज का विकास संवेदन की कमी से ज्यादा नजर आ रहा है. उन्होंने कहा कि व्यक्ति प्रेम के लिए वस्तुओं की तरफ झूक रहा है, लेकिन व्यक्ति के प्रति संवेदना दिखाता कम है. त्रिपाठी ने साहित्यकारों के सामने मौजूद बड़े संकट की चर्चा की. ये सभी महत्वपूर्ण छोटी-बड़ी बातों का केंद्र बनती हैं जो हमें सोचने पर मजबूर करती हैं.