काजोल को ट्रोल किया तो 'सामना' ने याद दिलाया पीएम मोदी का डिग्री विवाद, सीधी का पेशाब कांड
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सामना पत्रिका का संपादकीय इस बार अभिनेत्री काजोल के बयान से खड़े हुए विवाद पर है. दरअसल कालोज ने देश के विकास के लिए शिक्षित होने की महत्ता को बताया था, इसके लिए उन्होंने राजनेताओं के पढ़े-लिखे न होने का उदाहरण दिया था. इसी के बाद उनकी आलोचना होने लगी है. हालांकि सामना ने उनका बचाव किया है.
अभिनेत्री काजोल नेताओं की शिक्षा पर दिए अपने बयान को लेकर कई राजनीतिक दलों और ट्रोलर्स के निशाने पर हैं. उनकी खूब आलोचना हो रही है. हालांकि सामना पत्रिका ने अपने संपादकीय में काजोल का सपोर्ट किया है. सामना ने अपने संपादकीय में शिक्षा का जिक्र करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी की डिग्री, एमपी के सीधी में हुए पेशाब कांड और जेएनयू में दीपिका के जाने का मामला उठाया है.
सामना ने लिखा कि देश की वर्तमान राजनीति मूर्खों का घेरा बन गई है. अभिनेत्री काजोल ने इस पर अपनी स्पष्ट राय व्यक्त की है. काजोल ने कहा कि जिनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि नहीं है, ऐसे राजनेता देश चला रहे हैं. इस पर हमारे देश के अंधभक्तों ने हंगामा मचाना शुरू कर दिया. भक्तों ने मान लिया कि काजोल ने मौजूदा दिल्ली सरकार पर अपने विचार व्यक्त किए हैं और उन्होंने हमेशा की तरह काजोल को ट्रोल करना शुरू कर दिया. हमारे देश की एक उच्च शिक्षित कलाकार लोगों को शिक्षा का महत्व समझाती है और ऐसा करने पर बीजेपी के ‘ट्रोल हमलावर’ अभिनेत्री पर टूट पड़ते हैं.
सामना ने आगे लिखा कि काजोल महाराष्ट्र की बेटी है इसलिए स्पष्टवादिता उसके स्वभाव में होगी ही, फिर शिक्षा के संबंध में एक सोच देने वाले महात्मा फुले भी इसी मिट्टी से थे. महात्मा फुले ने शिक्षा की वकालत की. वे कहते हैं-
विद्या बिना मति चली गई मति के बिना नीति चली गई नीति के बिना गति चली गई गति के बिना वित्त चला गया वित्त के बिना छुद्र बढ़ गए एक अज्ञान ने इतना अनर्थ कर दिया!
महात्मा ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले ने लोगों को बुद्धिमान और शिक्षित बनाने के लिए कड़े प्रयास किए. उन्हीं सावित्री बाई की बेटी काजोल शिक्षा का महत्व बता रही है. काजोल ने शिक्षा का महत्व बताया, वह निश्चित तौर पर किसे और क्यों बुरा लगा? उन्होंने तो किसी का नाम नहीं लिया था. क्या उन्हें देश में विकास, शिक्षा, लोकतंत्र पर अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार नहीं है? डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था, ‘सीखो और संघर्ष करो.’ अज्ञान घातक होता है. अज्ञानता से अंधश्रद्धा और अंधभक्तों की पैदाइश बढ़ती है. भारत देश फिलहाल इसी अंधेरे से गुजर रहा है. अंधभक्तों को काजोल की बातें तीखी लगीं, क्योंकि उनके समक्ष उनके विश्व गुरु, प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर और चरित्र है.
सामना ने पीएम मोदी का जिक्र करते हुए लिखा कि प्रधानमंत्री ऐसा कहते हैं कि वे गुजरात में एक प्लेटफॉर्म पर चाय बेचते थे, लेकिन जिस गांव में वह चाय बेचते थे, उस गांव में तब कोई रेलवे ही नहीं थी, फिर वहां प्लेटफॉर्म कैसे हो सकता है? सवाल यह नहीं है कि चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री बन गया, बल्कि प्रधानमंत्री अपनी शैक्षणिक योग्यता क्यों छिपा रहे हैं. वे उच्च शिक्षित हैं, यह दिखाने के लिए मोदी की ओर से गृहमंत्री अमित शाह ने फर्जी ‘डिग्री प्रमाणपत्र’ जारी किए.
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