
क़ानूनी पेशे की संरचना सामंती, पितृसत्तात्मक और महिलाओं के अनुकूल नहीं है: सीजेआई चंद्रचूड़
The Wire
भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने एक आयोजन के दौरान कहा कि कभी-कभी क़ानून और न्याय एक ही रास्ते पर नहीं चलते हैं. क़ानून न्याय का ज़रिया हो सकता है, तो उत्पीड़न का औज़ार भी हो सकता है. क़ानून उत्पीड़न का औज़ार न बने, बल्कि न्याय का ज़रिया बने.
नई दिल्ली: प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि कानून के पेशे की संरचना ‘सामंती, पितृसत्तात्मक और महिलाओं को जगह नहीं देने वाली’ बनी हुई है. साथ ही, उन्होंने कहा कि इसमें अधिक संख्या में महिलाओं एवं समाज के वंचित वर्गों के लोगों के प्रवेश की खातिर लोकतांत्रिक व प्रतिभा आधारित प्रक्रिया अपनाने की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका के समक्ष कई चुनौतियां हैं और उनमें से पहली चुनौती उम्मीदों को पूरा करने की है, क्योंकि प्रत्येक सामाजिक एवं कानूनी विषय तथा बड़ी संख्या में राजनीतिक मुद्दे उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आते हैं.
जस्टिस चंद्रचूड ने बीते बुधवार (9 नवंबर) को प्रधान न्यायाधीश के तौर पर कार्यभार संभाला था.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘एक चीज, जो हमें समझने की जरूरत है, वह यह है कि न्यायपालिका में कौन प्रवेश करेगा वह बहुत हद तक कानून के पेशे की संरचना पर निर्भर करता है.’