![कहीं गठबंधन की मजबूरी, कहीं 20 साल का सूखा... दक्षिण भारत में कांग्रेस को संजीवनी दे पाएगी राहुल गांधी की यात्रा?](https://akm-img-a-in.tosshub.com/aajtak/images/story/202211/rahul_gandhi_bharat_jodo_12-sixteen_nine.jpg)
कहीं गठबंधन की मजबूरी, कहीं 20 साल का सूखा... दक्षिण भारत में कांग्रेस को संजीवनी दे पाएगी राहुल गांधी की यात्रा?
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कांग्रेस अपने खोए जनाधार को वापस पाने की जुगत में जुटी है. कांग्रेस को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान दक्षिण भारत के राज्यों में उमड़े जनसैलाब से संजीवनी की आस है तो वहीं अलग-अलग राज्यों में सियासी हालात भी अलग हैं. दक्षिण भारत में 130 लोकसभा सीटें आती है, क्या कांग्रेस साउथ से फिर उठ खड़ी हो पाएगी?
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी का खोया जनाधार वापस पाने की जुगत में भारत जोड़ो यात्रा पर निकले हैं. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष की इस यात्रा की शुरुआत दक्षिण भारत से हुई. दक्षिण भारत के पांच राज्यों से गुजरते हुए राहुल गांधी की इस यात्रा का रुख अब उत्तर की तरफ बढ़ने लगा है. सोमवार से राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' महाराष्ट्र में प्रवेश कर गई है, जो कांग्रेस के लिए किसी 'अग्नि पथ' से कम नहीं है. इस यात्रा को मिल रहे जन समर्थन में कमी आएगी या फिर और बड़ी संख्या में लोग इससे जुड़ते नजर आएंगे?
कन्याकुमारी से कश्मीर तक, लगभग 3570 किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा 170 दिन में पूरी होनी है. इस यात्रा को लेकर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), दोनों में सियासी जंग छिड़ी हुई है. बीजेपी इस यात्रा की शुरुआत से ही राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को घेरने में जुटी है. राहुल गांधी इसे ' तपस्या ' बता रहे हैं तो बीजेपी ढोंग. चार राज्यों में सिमट कर रह गई कांग्रेस एक बार फिर दक्षिण से कमबैक करने की कोशिश में है. भारत जोड़ो यात्रा से उसे बहुत ही ज्यादा उम्मीदें लगी हुई हैं.
तमिलनाडु में गठबंधन का गठजोड़
कन्याकुमारी के गांधी मंडपम में सजावट चल रही थी. कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का आगाज यहीं से होना था. ढोल और स्पीकर लिए कुछ युवा खड़े थे. वह रुक-रुक के नगाड़े बजाते फिर इधर-उधर निहारते. यूथ कांग्रेस के ये कार्यकर्ता अपने सीनियर का इंतजार कर रहे थे कि आखिर कब इजाजत मिले और वे जमकर ढोल बजाएं.
दरअसल, तमिलनाडू में कांग्रेस के सियासी ढोल-नगाड़े बजे कम से कम पांच दशक बीत गए हैं. द्रविड़ आंदोलन से जन्में क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व लगातार बढ़ता ही चला गया. साल 1967 में कांग्रेस ने तमिलनाडु की सत्ता गंवाई और इसके बाद सूबे की सियासत के शीर्ष पर द्रविड़ दलों का ही दबदबा रहा. सत्ता ने द्रविड़ दलों का जो दामन थामा, फिर उन्हीं की होकर रह गई.
डीएमके-कांग्रेस के लिए एक-दूसरे का साथ जरूरी
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