कश्मीर: एसपीओ पुलिसकर्मी क्या वाकई डंडे के भरोसे करते हैं सुरक्षा?
BBC
दक्षिणी कश्मीर के त्राल में एक पूर्व एसपीओ की हत्या के बाद उनकी भूमिका और उन्हें मिलने वाली सहूलियत की चर्चा फिर शुरु हो गई है.
भारतीय सेना के जवान लियाक़त भट्ट दक्षिणी कश्मीर के त्राल इलाक़े के रहने वाले हैं. बीते रविवार 25 वर्षीय लियाक़त जब सेना की ड्यूटी पर थे तब सशस्त्र चरमपंथी उनके घर में दाखिल हुए और उनके माता-पिता और बहन की गोली मार कर हत्या कर दी. उनके पिता फ़याज़ भट्ट (50) ने लंबे वक्त तक जम्मू कश्मीर पुलिस में स्पेशल पुलिस ऑफिशियल यानी एसपीओ के तौर पर सेवाएं दी थीं. जम्मू कश्मीर पुलिस के साथ कम से कम 30 हज़ार पुरुष और महिलाएं एसपीओ के तौर पर काम कर रहे हैं. वो नियमित नौकरी पाए पुलिसकर्मियों की तरह नहीं हैं. उन्हें मामूली मानदेय मिलता है. उन्हें प्रोविडेंट फंड और रिटायरमेंट के बाद किसी तरह की सुविधाएं नहीं मिलती हैं. पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक साल 1996 से चरमपंथी हमलों में पांच सौ से ज़्यादा एसपीओ जान गँवा चुके हैं. साल 1996 में ही सशस्त्र चरमपंथ से मुक़ाबले के लिए आम नागरिकों को 'मददगार बनाने' की नीति अमल में आई थी. पुलिस की शुरुआती जांच से जानकारी हुई है कि 27 जून की रात दो सशस्त्र चरमपंथियों ने फ़याज़ का दरवाज़ा खटखटाया. उन्होंने जैसे ही दरवाज़ा खोला चरमपंथियों ने उनके चेहरे और गर्दन पर गोलियां दाग दीं. उनकी पत्नी और बेटी को भी गोलियां लगीं. बाद में अस्पताल में उनकी मौत भी हो गई.More Related News