कश्मीरी पंडितों के विस्थापन और वापसी का सवाल: 'यहां तो 1990 से भी बदतर हालात हैं...'
BBC
1990 के दशक में चरमपंथियों द्वारा सशस्त्र हमलों के बाद भारत प्रशासित कश्मीर में घाटी छोड़ने वाले कई हिंदू पंडितों को सरकार ने नौकरियों के साथ वापस बुला लिया है, लेकिन उनकी सुरक्षा अभी भी दांव पर है.
"हममें से कुछ को नौकरियों के बहाने यहां बुला कर नई दिल्ली ने एक प्रयोग किया है, ताकि एक प्रोपेगैंडा किया जा सके कि कश्मीर में सब कुछ ठीक हो गया है. लेकिन अब हम मारे जा रहे हैं, इसके लिए हम किसे ज़िम्मेदार ठहराएं? क्या यह सरकार की ग़लती नहीं है?"
यह कश्मीर में हाल ही में हुई हत्याओं के ख़िलाफ़ पंकज कौल नाम के एक कश्मीरी पंडित की प्रतिक्रिया है. पंकज छह साल के थे जब साल 1990 में घाटी में हिंसा हुई थी और हज़ारों पंडित परिवारों ने घरबार छोड़कर जम्मू और अन्य भारतीय शहरों में शरण ली, जबकि कुछ ने अपनी ज़मीन नहीं छोड़ी.
कश्मीरी भाषा बोलने वाले स्थानीय हिंदुओं को घाटी में पंडित कहा जाता है. कश्मीर के पंडित और मुसलमान भाषा, संस्कृति, साहित्य, संगीत, जीवन शैली, खान पान और यहां तक कि बच्चों के घरेलू नाम और बड़ों के सरनेम एक ही तरह के हैं.
पंकज कौल बताते है कि इन्हीं सब परंपराओं से लगाव और मातृभूमि के प्यार ने हज़ारों पंडितों को हिंसक परिस्थितियों और ख़तरों के बावजूद यहां की ज़मीन से जोड़े रखा.
800 पंडित परिवार ऐसे हैं जिन्होंने कश्मीर नहीं छोड़ा, बल्कि अपने मुसलमान पड़ोसियों के साथ मिलकर मुश्किल हालात का सामना करते रहे.