कर्नाटक से पहले इन राज्यों ने लागू करना चाहा था लोकल के लिए आरक्षण, जानें- कहां अटक गई थी बात
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हरियाणा ने साल 2020 में, आंध्र प्रदेश ने साल 2019 में और झारखंड ने साल 2023 में निजी नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण लागू करने की कोशिश की थी. तीनों राज्यों ने सैलरी की लिमिट के साथ आरक्षण देने की बात कही थी.
कर्नाटक सरकार ने प्राइवेट सेक्टर की C और D कैटेगरी की नौकरियों में स्थानीय लोगों को आरक्षण देने के फैसले पर रोक लगा दी है. सरकार इस बिल पर पुनर्विचार करेगी. हालांकि हरियाणा, आंध्र प्रदेश और झारखंड ने निजी कंपनियों में स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों में आरक्षण लागू करने का प्रयास किया था.
सबसे पहले बात कर्नाटक की करें तो सिद्धारमैया सरकार ने सोमवार (15 जुलाई) को स्थानीय लोगों के लिए प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में आरक्षण वाला विधेयक पारित किया था. कैबिनेट द्वारा पारित इस विधेयक में आईटी सेक्टर समेत अन्य प्राइवेट सेक्टर में स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों में आरक्षण की बात कही गई थी, लेकिन कॉरपोरेट और इंडस्ट्री ने इसका विरोध किया था. इसके बाद सिद्धारमैया सरकार ने अपने फैसले पर यू-टर्न ले लिया है और प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में लोकल को रिजर्वेशन देने के फैसले पर रोक लगा दी है.
बता दें कि हरियाणा ने साल 2020 में, आंध्र प्रदेश ने साल 2019 में और झारखंड ने साल 2023 में निजी नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण लागू करने की कोशिश की थी. तीनों राज्यों ने सैलरी की लिमिट के साथ आरक्षण देने की बात कही थी.
आंध्र प्रदेश में कहां बिगड़ गई बात? आंध्र प्रदेश विधानसभा में साल 2019 में उद्योगों/कारखानों में स्थानीय लोगों के लिए आंध्र प्रदेश रोजगार विधेयक पारित किया था, इसका मतलब स्थानीय लोगों के लिए 75% नौकरियों को आरक्षित करना था. आंध्र प्रदेश के विधेयक में 30,000 रुपये मासिक वेतन वाली नौकरियों के लिए 75% तक आरक्षण अनिवार्य किया गया था. मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की YSRCP सरकार ने मई 2019 में विधेयक पारित किया था. ये मामला आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट में पहुंचा, कोर्ट ने विधेयक को लेकर कहा था कि ये असंवैधानिक हो सकता है.
हरियाणा सरकार का कानून कोर्ट ने रद्द किया
2020 में हरियाणा ने एक विधेयक पारित किया था, जिसमें स्थानीय लोगों के लिए प्राइवेट सेक्टर में 30,000 रुपये प्रति माह तक वेतन वाली 75% नौकरियों को आरक्षित किया गया था. इसके बाद विधेयक को जल्द ही राज्यपाल की मंज़ूरी मिल गई थी. इस कानून को फरीदाबाद इंडस्ट्रीज एसोसिएशन और अन्य संगठनों ने चुनौती दी थी, जो पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट गए और दावा किया कि यह कानून हरियाणा में कर्मचारियों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. उन्होंने यह भी कहा कि प्राइवेट सेक्टर की नौकरियां स्किल बेस्ड होती हैं और कर्मचारियों को पूरे देश में उपयुक्त नौकरी के लिए आवेदन करने का अवसर मिलना चाहिए.
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