कर्नाटक की ये आदिवासी महिला कैसे बन गईं किसानों की रोल मॉडल?
BBC
यदि उन्होंने पढ़ाई की होती तो वो सोशल मीडिया पर होतीं और उनकी पहचान एक 'इंफ्लुएंसर' यानी प्रभावित करने वाले व्यक्ति की होती. कभी मज़दूरी करके पेट पालने वाली प्रेमा आज एक सफल किसान हैं.
यदि उन्होंने पढ़ाई की होती तो वो सोशल मीडिया पर होतीं और उनकी पहचान एक 'इंफ्लुएंसर' यानी प्रभावित करने वाले व्यक्ति की होती.
लेकिन उनके पास कुछ ऐसी कुशलता है कि उन्हें कृषि और आदिवासी कल्याण का ब्रांड एंबैस्डर तो बनाया ही जा सकता है.
तेरह साल पहले तक प्रेमा दासप्पा (50) जंगल में रहती थीं और बेहद कम पारिश्रमिक पर मज़दूरी करती थीं.
अब वो दूसरी आदिवासी महिलाओं को सिखा रही हैं कि अपना आर्थिक सशक्तीकरण कैसे करें.
मैसूर ज़िले के एचडी कोटे से बीबीसी से बात करते हुए दासप्पा ने बताया कि पहले साल उन्होंने एक एकड़ भूमि पर चिया के बीज़ बोए थे जिसकी बिक्री से उन्हें 90 हज़ार रुपये की कमाई हुई थी. ये बीज उन्होंने 18 हज़ार रुपये क्विंटल बेचे थे. इस कमाई से उन्होंने अपने बेटे को मोटरसाइकिल ख़रीद कर दी थी.