
कर्नाटक: एनईपी के तहत मिड-डे मील से अंडे-मीट बाहर रखने, मनुस्मृति पढ़ाने का प्रस्ताव
The Wire
कर्नाटक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत विशेषज्ञों की एक समिति द्वारा दिए गए पोजीशन पेपर में कहा गया है कि मिड-डे मील में अंडे और मांस के नियमित सेवन से स्कूली बच्चों में जीवनशैली संबंधी विकार पैदा हो सकते हैं. एक समिति के प्रस्ताव में पाइथागोरस प्रमेय को 'फ़र्ज़ी' बताते हुए कहा गया है कि न्यूटन के सिर पर सेब गिरने की 'अप्रमाणिक' बात प्रोपगैंडा है.
बेंगलुरु: कर्नाटक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत एक स्थिति पत्र (पोजीशन पेपर) में कहा गया है कि स्कूली बच्चों को मिड-डे मील (मध्याह्न भोजन) में अंडा परोसने से उनके अंदर जीवनशैली संबंधी विकार पैदा हो सकते हैं.
द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय शिक्षा नीति के स्वास्थ्य और कल्याण संबंधी स्थिति पत्र में कहा गया है कि मिड-डे मील में स्कूली बच्चों को अंडे परोसने से छात्रों के बीच भेदभाव होगा और भारतीयों के छोटे शारीरिक ढांचे को देखते हुए अंडे और मांस के नियमित सेवन से उन्हें कोलेस्ट्रॉल से मिलने वाली अतिरिक्त ऊर्जा उनके अंदर जीवनशैली संबंधी विकारों को जन्म देगी.
इस स्थिति पत्र को बेंगलुरु के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (निमहंस) में बाल और किशोर मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख जॉन विजय सागर की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति ने तैयार किया है.
समिति का कहना है, ‘समान कक्षा के छात्रों को अलग-अलग खाना परोसने से बच्चों में पोषक तत्वों के वितरण में असंतुलन पैदा हो जाएगा. उदाहरण के लिए, समान कक्षा के छात्रों को अन्य व्यंजन या खाना परोसना, जैसे अंडा बनाम दालें या अंडा बनाम केला, बच्चों में पोषक तत्वों के असंतुलन को बढ़ावा देगा.’