कमलनाथ के चेहरे पर दिग्विजय की मुहर, मध्य प्रदेश में कांग्रेस को क्या नफा-नुकसान?
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मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है, बीजेपी सत्ता को बचाए रखने की जद्दोजहद कर रही है तो कांग्रेस अपनी वापसी के लिए बेताब है. ऐसे में दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ के चेहरे पर अपनी मुहर लगा दी है और मुख्यमंत्री पद के चेहरे के तौर पर चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया है.
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस एक बार फिर से कमलनाथ के अगुवाई में किस्मत आजमा रही है. पार्टी के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह भी इस बात पर सहमत हैं कि कमलनाथ के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा जाए. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत का दावा करते हुए उन्होंने कहा कि इस बार बिकाऊ नहीं, टिकाऊ माल आएगा. ऐसे में इस बात को समझना जरूरी होगा कि कांग्रेस के लिए कमलनाथ कितने जरूरी हैं और उनके नेतृत्व में उतरने से पार्टी को क्या नफा-नुकसान है?
कमलनाथ के पास सियासत का पांच दशक से ज्यादा का राजनीतिक अनुभव है. जाति के तौर पर न्यूट्रल फेस के साथ ही वह मध्य प्रदेश में होने वाले चुनाव में कांग्रेस के लिए संसाधन जुटाने की क्षमता रखते हैं. चुनावी प्रबंधन से आर्थिक मैनेजमेंट के मामले में पार्टी के अन्य नेताओं से वह मजबूत हैं. उन्हें गांधी परिवार का भी समर्थन हासिल है तो पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का भी रणनीतिक तौर पर समर्थन मिल रहा है. कमलनाथ कांग्रेस में सबसे सीनियर लीडर हैं और प्रदेश कांग्रेस में फिलहाल ऐसा कोई भी नेता इस योग्य नहीं है कि जिसे आगे कर पार्टी चुनावी मैदान में उतार सके. कमलनाथ की ताकत ही कांग्रेस की कमजोरी भी है.
कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस लड़ेगी चुनाव
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. बीजेपी अपनी सत्ता को बचाए रखने की जद्दोजहद कर रही है तो कांग्रेस अपनी वापसी के लिए बेताब है. कांग्रेस एक बार फिर से कमलनाथ के नेतृत्व में ही 2023 के चुनावी मैदान में उतर रही है. पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह से लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव जैसे मध्य प्रदेश के दिग्गज नेता भी कमलनाथ के चेहरे पर अपनी मुहर लगा चुके हैं. पार्टी हाईकमान ने भले ही सार्वजनिक रूप से ऐलान न किया हो, लेकिन उनका भी समर्थन कमलनाथ को है. इसके पीछे कई सियासी वजह हैं, जिसके चलते कमलनाथ के फेस को आगे कर पार्टी चुनावी मैदान में उतर रही है.
कमलनाथ ने कांग्रेस का वनवास खत्म किया था
कमलनाथ मध्य प्रदेश में कांग्रेस का 15 साल का सत्ता का वनवास 5 साल पहले 2018 में खत्म करने में सफल रहे हैं. 2018 विधानसभा चुनाव में कमलनाथ ने खुद को सिद्ध किया था और मोदी-शिवराज-शाह की मजबूत तिकड़ी को चुनौती देते हुए सत्ता में आए थे. लेकिन, ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते कमलनाथ 15 महीने ही सत्ता में रह सके थे. सिंधिया के बीजेपी में जाने के बाद कमलनाथ को चुनौती देने के लिए पार्टी में कोई नहीं बचा है. दिग्विजय से लेकर अरुण यादव, कांतिलाल भूरिया, सुरेश पचौरी और गोविंद सिंह तक सभी कमलनाथ के साथ खड़े हैं.
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