कभी फैशन और स्टाइल की राजधानी थी काबुल, ऐसा था महिलाओं का अंदाज
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तालिबान के पिछले शासनकाल में महिलाओं की आजादी को निर्ममता से खत्म किया गया था. तालिबान ने सजा देने के इस्लामिक तौर तरीकों को लागू किया था. महिलाओं का अकेले निकलना बैन था. नौकरी करने पर प्रतिबंध था. बुर्का ना पहनने पर सरेआम पीटा जाता था. हालांकि हमेशा से ऐसा नहीं था.
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर तालिबान कब्जा जमा चुका है. अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग चुके हैं और रिपोर्ट्स के अनुसार, वे अमेरिका जाने की फिराक में हैं. अफगानिस्तान के ज्यादातर हिस्सों में तालिबान का नियंत्रण हो चुका है. इसके चलते इस देश में अफरा-तफरी का माहौल है. दरअसल हजारों लोग तालिबान के पहले शासन के चलते घबराए हुए हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर/getty images) इसी घबराहट का नतीजा है कि काबुल एयरपोर्ट पर जबरदस्त भगदड़ देखने को मिली. अफगानिस्तान के लोग इस देश से दूर चले जाना चाहते हैं क्योंकि तालिबान के पिछले शासनकाल में महिलाओं की आजादी को निर्ममता से खत्म किया गया था. तालिबान ने सजा देने के इस्लामिक तौर तरीकों को लागू किया था. महिलाओं का अकेले निकलना बैन था. नौकरी करने पर प्रतिबंध था. बुर्का ना पहनने पर सरेआम पीटा जाता था. (अफगानिस्तान की छात्राएं स्कूल से आते हुए, 1967, फोटो क्रेडिट: Dr Bill Podlich) हालांकि अफगानिस्तान हमेशा से ऐसा नहीं था. अफगानिस्तान में एक दौर ऐसा भी था जब इस देश में आधुनिकीकरण और संस्कृति का मिश्रण देखने को मिलता था. अमेरिका के नागरिक डॉक्टर बिल पोडलिच अपनी दो बेटियों और पत्नी के साथ साल 1967 में अफगानिस्तान आए थे और उन्होंने इस देश के कल्चर को काफी पसंद भी किया था. वे अक्सर अफगानी लाइफस्टायल की तस्वीरें क्लिक किया करते थे. (Higher Teachers college of Kabul, 1967, फोटो क्रेडिट: Dr Bill Podlich)गुजरात के मुख्य सचिव की ओर से कोर्ट में हलफनामा पेश किया गया, जिसमें बताया गया कि राज्य सरकार के 27 विभिन्न विभागों में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए 21,114 पदों पर नियुक्तियां की जानी हैं. इन रिक्तियों में 9,251 पद दृष्टिहीन और कम दृष्टि वाले व्यक्तियों के लिए, 4,985 पद श्रवण बाधितों के लिए, 1,085 पद लोकोमोटर विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिए, और 5,000 पद अन्य विकलांगताओं से प्रभावित व्यक्तियों के लिए आरक्षित हैं.
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