
कनाडा तक ही सिमट कर रह जाएगा खालिस्तान आंदोलन, पूर्व कनाडाई मंत्री ने दावे के साथ दिए ये तर्क
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कनाडा के वैंकूवर शहर में उदारवादी सिखों की एक प्रमुख आवाज दोसांझ पर फरवरी 1985 में चरमपंथी तत्वों के खिलाफ बोलने के बाद एक पार्किंग स्थल के बाहर खालिस्तानियों द्वारा हमला किया गया था. हमले में उनका हाथ टूट गया और सिर पर 80 टांके लगे थे. इसके बावजूद, दोसांझ सिख धर्म में चरमपंथी तत्वों के कठोर आलोचक बने रहे हैं. ऐसे में उन्होंने आजतक/इंडिया टुडे के कई सवालों के जवाब दिए.
भारत और कनाडा के रिश्ते इन दिनों खराब स्थिति से गुजर रहे हैं. ऐसे में भारतीय मूल के पूर्व कनाडाई मंत्री उज्ज्वल दोसांझ का कहना है कि भारत और कनाडा के बीच अब बहुत कम भरोसा है क्योंकि ओटावा एक मित्र देश के टुकड़े करने का आह्वान करने वाले सिख चरमपंथियों की स्पष्ट रूप से निंदा नहीं करता है.
उज्ज्वल दोसांझ ने आजतक से कई विषयों पर बात की. इनमें भारत-कनाडाई संबंधों में गिरावट, कनाडा में खालिस्तानी आंदोलन की जड़ें और क्यों जस्टिन ट्रूडो के सिख चरमपंथियों के साथ मेलजोल ने भारत सरकार के साथ विश्वास के मुद्दे पैदा किए हैं, जैसे मुद्दों पर बात की. उज्ज्वल दोसांझ ब्रिटिश कोलंबिया के प्रमुख थे. वह 2004-11 तक लिबरल पार्टी के संसद सदस्य भी थे. उसी पार्टी के नेता जस्टिन ट्रूडो हैं. उन्होंने 2004-06 तक कनाडा के स्वास्थ्य मंत्री के रूप में भी काम किया है.
कनाडा के वैंकूवर शहर में उदारवादी सिखों की एक प्रमुख आवाज दोसांझ पर फरवरी 1985 में चरमपंथी तत्वों के खिलाफ बोलने के बाद एक पार्किंग स्थल के बाहर खालिस्तानियों द्वारा हमला किया गया था. हमले में उनका हाथ टूट गया और सिर पर 80 टांके लगे थे. इसके बावजूद, दोसांझ सिख धर्म में चरमपंथी तत्वों के कठोर आलोचक बने रहे हैं. ऐसे में उन्होंने आजतक/इंडिया टुडे के कई सवालों के जवाब दिए.
सवाल: जस्टिन ट्रूडो द्वारा भारत पर लगाए गए आरोप और उस पर नई दिल्ली की प्रतिक्रिया के बारे में आप क्या सोचते हैं?
जवाब: जब आप किसी राजनयिक को निष्कासित करते हैं, तो देश ऐसी प्रतिक्रिया करता है जिसे जैसे को तैसा वाला कदम कहा जाता है. ट्रूडो ने हाउस ऑफ कॉमन्स में बयान देकर इस मुद्दे को तूल दिया. अब दोनों देशों के बीच बहुत कम भरोसा है. भारत को ट्रूडो पर भरोसा नहीं है क्योंकि उनके नेतृत्व अभियान के बाद से ही उन्हें खालिस्तानियों के साथ मेलजोल रखते देखा गया है. उनके सबसे वरिष्ठ सलाहकारों और कैबिनेट मंत्रियों में से एक पर खालिस्तानी होने का आरोप लगाया गया था. अब उन्हें सरकार में जगमीत सिंह का समर्थन प्राप्त है, जो एक मशहूर खालिस्तानी है.
भारत ट्रूडो पर भरोसा नहीं करना चाहता, इसका दूसरा कारण यह है कि वे (कनाडाई सरकार के सदस्य) हमेशा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आश्रय लेते हैं. जिसे व्यक्त करने का अधिकार सभी को है. लेकिन अगर आप भारत को एक मित्र देश और साथी लोकतंत्र मानते हैं, तो कनाडा के नेता के रूप में आपका दायित्व है कि आप अपने नागरिकों को बताएं कि देखो दोस्तों, आपको खालिस्तान की मांग करने का अधिकार है लेकिन मेरी सरकार एक मित्र राष्ट्र के टुकड़े-टुकड़े करने का समर्थन नहीं करती है. उन्होंने ऐसा कभी नहीं कहा. वास्तव में, किसी भी कनाडाई राजनेता ने ऐसा नहीं कहा है.

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