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कच्चे तेल के दाम घटे, सरकार ख़जाना भरेगी या आम लोगों से घटेगा बोझ
BBC
आंकड़ों के मुताबिक जून में ख़त्म हुई तिमाही एक्साइज़ ड्यूटी से सरकार की 90 हज़ार करोड़ से ज़्यादा हुई कमाई. आने वाले वक़्त के लिए क्या सोचते हैं विशेषज्ञ, पढ़िए
पश्चिमी देशों में कोविड महामारी के डेल्टा वैरिएंट के बढ़ते मामलों के कारण अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में कच्चे तेल की क़ीमत सात प्रतिशत घटी, जो मंगलवार तक स्थिर हो गई. कच्चे तेल के दाम के नीचे गिरने का एक और कारण था रविवार को तेल पैदा करने वाले देशों के संगठन ओपेक और ओपेक प्लस कहे जाने वाले देशों के बीच तेल के उत्पादन को बढ़ाने पर हुआ समझौता. पिछले सप्ताह तेल उत्पादन के कोटे को लेकर दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक देशों, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के बीच हुए मनमुटाव ने दोनों देशों के बीच बातचीत को लटका दिया था, लेकिन रविवार को ये विवाद ख़त्म हुआ और एक बयान में ओपेक कार्टेल ने घोषणा की कि इराक़, कुवैत, रूस, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात उत्पादन बढ़ाएँगे. लेकिन क्या भारत में पेट्रोल और डीजल की क़ीमतों में गिरावट होगी, जो इन दिनों 100 रुपए प्रति लीटर से भी अधिक है? भारत में तेल के दाम अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों की क़ीमतों से निर्धारित होते हैं. इसका मतलब ये हुआ कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में घटती और बढ़ती क़ीमतों का सीधा असर भारत के आम उपभोक्ताओं पर भी पड़ेगा. लेकिन पिछले कुछ सालों से रुझान ये देखने को मिला है कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में कच्चे तेल की क़ीमतों में कमी के बावजूद भारत में पेट्रोल और डीज़ल के दाम बढ़ते ही जा रहे हैं. इसकी वजह केवल एक है वो ये कि केंद्र और राज्य सरकारें तेल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाती रहती हैं.More Related News