कई महिला वकील घरेलू ज़िम्मेदारियों के चलते जज बनने से इनकार कर देती हैं: सीजेआई बोबडे
The Wire
उच्च न्यायालयों में महिला जजों की नियुक्ति संबंधी याचिका की सुनवाई के दौरान सीजेआई एसए बोबडे ने कहा कि केवल हाईकोर्ट में ही क्यों, समय आ गया है जब भारत की प्रधान न्यायाधीश महिला होनी चाहिए. तीन जजों की पीठ ने यह भी कहा कि कॉलेजियम ने हर बैठक उच्च न्यायपालिका में महिलाओं की नियुक्ति पर विचार किया है.
नई दिल्ली: देश के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने एक मामले की सुनवाई के दौरान गुरुवार को कहा कि कई महिला वकीलों ने अपनी घरेलू जिम्मेदारियों का हवाला देते हुए जज बनाए जाने के प्रस्ताव को अस्वीकार किया है. लाइव लॉ के अनुसार, शीर्ष अदालत महिला वकीलों के निकाय द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के तौर पर नियुक्ति में उनमें मौजूद ‘सराहनीय’ पर विचार करने का अनुरोध किया गया था. सुप्रीम कोर्ट महिला वकील संघ ने वकील स्नेहा कलीता के ज़रिये दायर याचिका में न्यायपालिका में महिलाओं की उचित भागीदारी की मांग की है. उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के बीते 71 सालों के कामकाज में 247 जजों में से सिर्फ आठ महिलाएं थीं. मौजूदा समय में जस्टिस इंदिरा बनर्जी सुप्रीम कोर्ट की एकमात्र महिला जज हैं. उल्लेखनीय है कि 26 जनवरी 1950 को मौजूदा न्यायिक व्यवस्था अस्तित्व में आई और अगले नामित प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना सहित 48 जस्टिस देश के शीर्ष न्यायिक पद पर आसीन हो चुके हैं लेकिन इनमें से कोई भी महिला नहीं है.More Related News