
ऑस्कर की दौड़ में भारत के उपेक्षित तबक़े पर आधारित फिल्म की कहानी
BBC
ये डॉक्यूमेंट्री जिस ख़बर लहरिया के पत्रकारों पर आधारित है, उनमें बाल खनन मज़दूर रह चुकी बाल विवाह की शिकार और घरेलू हिंसा और शोषण की शिकार औरतें शामिल हैं
हो सकता है कि इस साल के अकादमी पुरस्कारों (ऑस्कर अवार्ड्स) में 12 नामांकन पाने वाली जेन कैंपियॉन की 'द पावर ऑफ़ द डॉग' ही बाज़ी मार ले जाए. मगर भारत के सिर चढ़कर तो अपने ही देश के हाशिए पर पड़े तबक़े की कहानी का जादू छाया है. ये वो कहानी है जो इस बार ऑस्कर की डॉक्यूमेंट्री फीचर वर्ग के पुरस्कार की होड़ में शामिल है.
'राइटिंग विद फायर' हमें ख़बर लहरिया नाम के एक समाचार सेवा की ताक़तवर महिलाओं की असाधारण सुनाती है.
ख़बर लहरिया को चलाने वाली महिलाएं, देश के सबसे कमज़ोर और हाशिए पर पड़े तबक़ों मसलन दलितों, मुसलमानों या फिर आदिवासी समुदाय से ताल्लुक़ रखती हैं. 'राइटिंग विद द फायर' का प्रीमियर पिछले साल सनडांस फिल्म फेस्टिवल में हुआ था. तब इस डॉक्यूमेंट्री फीचर फिल्म ने दो पुरस्कार जीते थे. हालांकि, इसे अभी तक भारत में नहीं दिखाया गया है.
लेकिन, ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नामांकन और विदेशी समीक्षकों से मिली ज़बरदस्त तारीफ़ ने भारत में भी इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म को लेकर काफ़ी दिलचस्पी जगाई है. राइटिंग विद फायर के बारे में द वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा था कि, 'पत्रकारिता पर बनी तमाम फिल्मों में से ये शायद सबसे ज़्यादा प्रेरणा देने वाली है.'
ख़बर लहरिया की शुरुआत, बीस साल पहले उत्तर प्रदेश के बेहद पिछड़े कहे जाने वाले बुंदेलखंड इलाक़े में एक पन्ने के प्रकाशन से हुई थी. ख़बर लहरिया का मतलब है...समाचारों की लहरें. अब ये समाचार सेवा पूरी तरह से डिजिटल हो चुकी है. यू-ट्यूब पर इसके पांच लाख से ज़्यादा सब्सक्राइबर हैं, और हर महीने इस चैनल को औसतन एक करोड़ व्यूज़ मिलते हैं.