ऑपरेशन ब्लू स्टार की एनिवर्सरी पर वोटिंग से पंजाब में किसे फायदा और किसे नुकसान हो सकता है?
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40 साल बाद ऑपरेशन ब्लू स्टार की चुनावी राजनीति में जोरदार एंट्री देखी जा रही है. अकाली दल नेता सुखबीर सिंह बादल आक्रामक तरीके से कांग्रेस को घेर रहे हैं, और दिल्ली में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने वाली आम आदमी पार्टी अपनेआप घिर जा रही है.
1 जून, 2024 को ऑपरेशन ब्लू स्टार के 40 साल होने जा रहे हैं, लेकिन पजांब की चुनावी राजनीति में पहली बार सीधा असर महसूस किया जा रहा है. सिखों की सर्वोच्च संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की तरफ से ऐसी कोशिशें हो रही हैं कि लोगों को इसकी याद ताजा हो जाये - बादल परिवार का शिरोमणि अकाली दल भी चुनावी रैलियों में इसे खूब हवा दे रहा है.
पंजाब की 13 लोकसभा सीटों के लिए सातवें और आखिरी चरण में वोट डाले जाने हैं. और उससे पहले ऑपरेशन ब्लू स्टार की याद दिलाने के लिए जगह जगह बैनर और पोस्टर तो लगाये ही गये हैं, एसजीपीसी की तरफ से प्रवेश द्वार पर क्षतिग्रस्त अकाल तख्त इमारत का एक मॉडल भी लगा दिया गया है.
पंजाब में फिलहाल आम आदमी पार्टी की सरकार है, लेकिन अब उसके हिस्से में लोकसभा की एक भी सीट नहीं रह गई है. पार्टी संगरूर लोकसभा सीट तो उपचुनाव में हार गई थी, जबकि जालंधर में जीत मिली थी. जालंधर सांसद सुशील कुमार रिंकू आप छोड़कर बीजेपी के टिकट पर इस बार मैदान में हैं - ये पंजाब ही है जहां से पहली बार भगवंत मान सहित आप के चार सांसद लोकसभा पहुंचे थे. भगवंत मान फिलहाल पंजाब के मुख्यमंत्री हैं.
2022 के विधानसभा चुनाव में तो आप ने पंजाब में भी करीब करीब दिल्ली जैसा ही प्रदर्शन किया था, लेकिन आम चुनाव में उसे सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, अकाली दल और बीजेपी दोनों से भी दो दो हाथ करने पड़ रहे हैं. 2019 के चुनाव में अकाली दल और बीजेपी साथ चुनाव लड़े थे.
विधानसभा चुनाव में तो बीजेपी का हाल कांग्रेस से भी बुरा रहा, लेकिन लोकसभा चुनाव में वो खुद को बेहतर स्थिति में पा रही है, और यही वजह है कि पंजाब में आप, कांग्रेस, बीजेपी और अकाली दल के बीच चतुष्कोणीय मुकाबला माना जा रहा है.
ऑपरेशन ब्लू स्टार के चुनावी मुद्दे के रूप में उभरने के पीछे एक बड़ी वजह अकाली दल और बीजेपी के बीच तीन दशक पुराना गठबंधन टूट जाना भी लगता है. असल में, कृषि कानूनों के मुद्दे पर एनडीए से अलग होकर बीजेपी का साथ छोड़ दिया था.
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