एससी-एसटी क़ानून सही अर्थों में लागू होने तक जाति आधारित भेदभाव से मुक्ति नहीं मिल सकती: कोर्ट
The Wire
दिल्ली हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज एक प्राथमिकी को शिकायतकर्ता और आरोपियों के बीच हुए समझौते के आधार पर रद्द करने से इनकार कर दिया और कहा कि जा बी तक इस क़ानून को इसकी वास्तविक भावना में लागू नहीं किया जाता तब तक जाति आधारित भेदभाव से रहित समाज का सपना दूर की कौड़ी बना रहेगा.
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि जब तक अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 को उसके वास्तविक अर्थों और भावना में लागू नहीं किया जाता तब तक जाति आधारित भेदभाव रहित समाज का सपना दूर का सपना बना रहेगा.
जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने अधिनियम के तहत दर्ज एक प्राथमिकी को शिकायतकर्ता पीड़ित और आरोपियों के बीच हुए समझौते के आधार पर रद्द करने से इनकार कर दिया और कहा कि संविधान के संस्थापक समाज की कठोर वास्तविकताओं से अवगत थे और ऐसे मामलों में आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए अपने असाधारण अधिकारक्षेत्र का प्रयोग करने में अदालत को बेहद चौकस रहना चाहिए.
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने उसके खिलाफ जाति आधारित अपमानजनक टिप्पणी की, गाली दी और धमकाया.
अदालत ने कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम का उद्देश्य इन समुदायों के सदस्यों के अपमान और उत्पीड़न के कृत्यों को रोकना और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करना है.