एक मिनट की कीमत क्या होती है? नागपुर के इन नेताजी से पूछिए... नहीं भर पाए नामांकन, बोले- बाहर वाले गेट में तो घुस चुका था
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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन की अंतिम तारीख को एक नेता महज एक मिनट की देरी की वजह से नामांकन भरने से चूक गए. नामांकन दाखिल करने से चूके पूर्व विधायक को प्रकाश आंबेडकर की पार्टी ने टिकट दिया था.
एक पुरानी कहावत है- समय होत बलवान. समय कितना बलवान होता है और एक-एक मिनट की कीमत क्या होती है, इसका अंदाजा इंसान को तब होता है जब कोई व्यक्ति कुछ पल, कुछ क्षण, कुछ सेकंड, कुछ मिनट की वजह से किसी लक्ष्य से चूक जाता है. ताजा वाकया महाराष्ट्र चुनाव से जुड़ी हुई है. एक मिनट की कीमत क्या होती है, कोई नागपुर के अनीस अहमद से पूछे.
नागपुर की मध्य नागपुर विधानसभा सीट से प्रकाश आंबेडकर की पार्टी वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) ने अनीस को उम्मीदवार घोषित किया था लेकिन वे एक मिनट देरी की वजह से नामांकन नहीं भर पाए. पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री अनीस अहमद कांग्रेस से टिकट के दावेदार थे. कांग्रेस से टिकट नहीं मिला तो हर हाल में चुनाव लड़ने की जिद पर अड़े अनीस ने हाथ का साथ छोड़ एक दिन पहले ही वीबीए का दामन थाम लिया था.
वीबीए ने अनीस को टिकट भी दे दिया. महाराष्ट्र चुनाव के लिए नामांकन की अंतिम तारीख 29 अक्टूबर को वह नामांकन के लिए पहुंचे भी. अनीस ने हर एक औपचारिकता, प्रक्रिया पूरी की लेकिन जब तक वह नामांकन पत्र दाखिल करने निर्वाचन अधिकारी के पास पहुंचते तीन बजकर एक मिनट हो चुका था. नामांकन के लिए निर्धारित समय तीन बजे तक का ही था.
इस एक मिनट की देरी का हवाला देते हुए निर्वाचन अधिकारी ने नामांकन हॉल का दरवाजा बंद करा दिया. अनीस अहमद नामांकन पत्र दाखिल करने से वंचित रह गए और इस बार चुनावी रण में उतर महाराष्ट्र विधानसभा के दरवाजे पर दस्तक देने का उनका ख्वाब भी टूट गया. अनीस ने इस पूरे प्रकरण के लिए प्रशासन को कठघरे में खड़ा किया है. अनीस अहमद ने आरोप लगाते हुए कहा कि तीन बजने के पहले अंदर जा चुका था.
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अनीस अहमद ने दावा किया कि मेरा आदमी अंदर बैठा था. उसे टोकन नंबर आठ दिया गया था. जब मेरा आदमी अंदर बैठा था तो फिर मुझे क्यों जाने नहीं दिया गया. उन्होंने यह भी कहा कि जब एक बार इस दरवाजे से अंदर घुस गया तो उसके बाद और कोई दरवाजा नहीं होना चाहिए. अनीस ने कहा कि तीन बजे के पहले मेन गेट, सेमी गेट, सब दरवाजे पार करके अंदर पहुंच चुका था. अधिकारियों ने मुझे जाने नहीं दिया.
सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह रही कि खींवसर को तीन क्षेत्रों में बांटकर देखा जाता है और थली क्षेत्र को हनुमान बेनीवाल का गढ़ कहा जाता है. इसी थली क्षेत्र में कनिका बेनीवाल इस बार पीछे रह गईं और यही उनकी हार की बड़ी वजह बनी. आरएलपी से चुनाव भले ही कनिका बेनीवाल लड़ रही थीं लेकिन चेहरा हनुमान बेनीवाल ही थे.
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