एंटी-इनकंबेंसी का डर या नई रणनीति... मनीष सिसोदिया की सीट बदलने का मतलब क्या? पढ़ें- इनसाइड स्टोरी
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आम आदमी पार्टी ने एंटी-इनकंबेंसी को काउंटर करने के लिए बीजेपी की रणनीति अपनाई है. इसके तहत मौजूदा उम्मीदवारों को बदलकर उनके खिलाफ पब्लिक की नाराजगी को कम या पूरी तरह खत्म कर दो. बीजेपी का यह प्रयोग कई राज्यों में सफल रहा है.
आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जोर-शोर से जुट गए हैं. एक तरफ रोजाना अलग-अलग इलाकों में वह छोटी-छोटी सभाएं कर रहे हैं तो दूसरी तरफ केंद्र सरकार को अलग-अलग मुद्दों और खास तौर पर कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर घेरने का मौका नहीं चूक रहे. AAP ने 31 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा भी कर दी है. पार्टी ने सोमवार को 20 उम्मीदवारों की अपनी दूसरी लिस्ट जारी की.
चौंकाने वाली बात ये है कि सभी 20 सीटों पर इस बार वे उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ेंगे, जिन्होंने उन सीटों पर आम आदमी पार्टी से 5 साल पहले चुनाव लड़ा था. AAP ने कुछ सीटों पर प्रत्याशियों की फेरबदल की है, वहीं ज्यादातर सीटों पर पुराने चेहरों की जगह नए प्रत्याशी पर दांव लगाया है.
एंटी-इनकंबेंसी का डर या नई रणनीति
आम आदमी पार्टी ने एंटी-इनकंबेंसी को काउंटर करने के लिए बीजेपी की रणनीति अपनाई है. इसके तहत मौजूदा उम्मीदवारों को बदलकर उनके खिलाफ पब्लिक की नाराजगी को कम या पूरी तरह खत्म कर दो. बीजेपी का यह प्रयोग कई राज्यों में सफल रहा है. आम आदमी पार्टी के कई विधायकों के लिए यह चौथा चुनाव है. इस कारण धीरे-धीरे उनके खिलाफ आम लोगों से लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में भी नाराजगी साफ तौर पर देखी जा सकती है. आम आदमी पार्टी की पहली लिस्ट, बाहर से आए नेताओं को एडजस्ट करने की तरकीब मालूम पड़ रही थी.
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वहीं दूसरी लिस्ट में अरविंद केजरीवाल ने विधायकों के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी को काउंटर करने की तरकीब अपनाई है. AAP ने सभी सीटों पर सर्वे कराया है और जिन विधायकों के खिलाफ रिपोर्ट फेवरेबल नहीं है, उनका पत्ता काटा जा रहा है. इससे साफ पता चलता है कि दो बार 60 से ऊपर सीटें जीतने के बाद इस बार AAP को भी एंटी-इनकंबेंसी का डर सता रहा है. अगर ऐसा नहीं होता तो इतने बड़े स्तर पर उम्मीदवारों की फेरबदल नहीं होती.
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