उपचुनावों में हार है खतरे का संकेत, 5 चुनौतियों से पार नहीं पाई BJP तो आगे भी मुश्किल
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लोकसभा चुनावों में उम्मीद के अनुरूप सफलता न मिलने के बाद उपचुनावों में मिली हार से बीजेपी को सबक सीखना होगा. इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में भी पार्टी की स्थित संतोषजनक नहीं है.
शनिवार को सात राज्यों की तेरह विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे विपक्ष के लिए एक बार उम्मीद की किरण दिखा रहे हैं. इन चुनावों में इंडिया गठबंधन की पार्टियों ने जहां 10 सीटें जीत लीं वहीं बीजेपी सिर्फ़ दो सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी. एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार के हिस्से में गई है. लोकसभा चुनावों में उम्मीद से बढ़िया प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस अति उत्साह में है.राहुल और प्रियंका के बयान बताते हैं कि इन चुनावों से उन्हें ताकत मिली है. हालांकि भाजपा की ओर से कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी को उपचुनाव में ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है. क्योंकि जिन 13 सीटों पर उपचुनाव हुए हैं, उनमें से बीजेपी के पास सिर्फ़ चार सीटें ही थीं जबकि तीन निर्दलीय विधायकों के पास थीं. खैर, बीजेपी को इन उपचुनाव में बड़ी हार भले न मिली हो पर भविष्य के लिए संकेत तो है ही. पार्टी के सामने पहाड़ जैसी चुनौतियां हैं. अगर पार्टी नेता समय रहते निजात नहीं पाते हैं तो आगे राह और कठिन हो सकती है.
1- जनता को कुछ बदलता नहीं दिख रहा है
केंद्र में नई सरकार बन गई पर जनता को कुछ बदलाव होता नहीं दिख रहा है. इसलिए सरकार को लेकर जनता तो छोड़िए कार्यकर्ता का भी उत्साह ठंडा पड़ रहा है. कांग्रेस लगातार यह नरेटिव सेट करने में सफल साबित हो रही है कि बेरोजगारी के मोर्चे पर कुछ नहीं किया जा रहा है. इस बीच लगातार कई परीक्षाओं के कैंसल होने और कई परीक्षाओं के पेपर आउट होने से आम जनता का भरोसा टूट रहा है. नीट परीक्षा को लेकर आम लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि सरकार चाहती क्या है? इस बीच लगातार एयरपोर्ट की कैनोपी रिसने, पुलों के बह जाने आदि की खबरों से लोगों के बीच यह संदेश पहुंच रहा है कि भ्रष्टाचार के मोर्चे पर सरकार असफल रही है. जब माहौल अपने पक्ष में नहीं होता तो विपक्ष को छोड़िए पार्टी के भीतर से भी असंतोष की आवाजें उठने लगती हैं. उत्तर प्रदेश के एक बीजेपी विधायक और एक पूर्व मंत्री ने कुछ ऐसी ही बातें की हैं जो पार्टी के खिलाफ जा रही हैं. जनता को लगने लगा है कि कुछ भी नहीं बदला है. यह टेंडेंसी अगर बढ़ती है तो आने वाले दिनों में जनता के बीच बदलाव की बयार बहेगी. जिसे रोकना भारतीय जनता पार्टी के लिए मुश्किल साबित होगा.
2- महाराष्ट्र-हरियाणा और झारखंड में बीजेपी बैकफुट पर है
पार्टी की एक मुश्किल यह भी है कि इस साल तीन प्रदेशों में चुनाव होने है. महाराष्ट्र-हरियाणा और झारखंड में पार्टी की जो अभी स्थिति है उसके आधार पर तो यही कहा जा सकता है कि इन तीनों राज्यों में बीजेपी का आना बहुत मुश्किल है. हरिय़ाणा में 2019 के चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. जेजेपी के सहयोग से बीजेपी को सरकार बनाना पड़ा था. इसके लिए जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को प्रदेश में डिप्टी सीएम बनाना पड़ा था. लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी ने दुष्यंत से भी नाता तोड़ लिया है. लोकसभा चुनावों में बीजेपी को अपनी 5 सीटें गंवानी पड़ी हैं. हरियाणा में नया सीएम लाने के बाद भी कुछ नहीं बदला है. जातियों के समीकरण को ध्यान रखते हुए नायब सिंह सैनी की ताजपोशी तो हो गई पर प्रदेश के लोगों को नहीं लगता है कि कुछ बदलाव भी हुआ है. नए सीएम के आने के बाद विकास कार्यों के क्रियान्वयन और जनता की समस्याओं को लेकर नई सरकार में जो उत्साह होता है वह सैनी सरकार में पहले दिन से ही नहीं दिखी.
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों में मिली करारी शिकस्त से पार्टी भविष्य में किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ना है इसके लेकर ही कन्फ्यूज है. पार्टी अपनी हार के कारणों का सही कारण ही नहीं समझ पा रही है. विधानपरिषद चुनावों में जोड़ तोड़ कर महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने जरूर अपने पांचों कैंडिडेट जिता लिए पर यह अप्रत्यक्ष चुनाव था इसलिए पार्टी को ज्यादा उत्साहित होने की जरूरत नहीं है. पार्टी ने विधानपरिषद चुनावों में ओबीसी कैंडिडेट्स पर दांव खेला है. पर प्रदेश की जनसंख्या में करीब 33 प्रतिशत मराठों को लेकर पार्टी अभी भी कोई स्टैंड नहीं ले पा रही है. झारखंड के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के लिए जरूर थोड़ी उत्साहजनक स्थिति में थी पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अब फिर से मैदान में आ चुके हैं. वो आने वाले विधानसभा चुनावों में जनता की सहानुभूति हांसिल कर सकते हैं.
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