उत्तर प्रदेश: वाराणसी का ग़रीब तबका योगी सरकार को जनविरोधी क्यों बता रहा है
The Wire
उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव भाजपा के व्यवसायिक हिंदू राष्ट्रवाद के मॉडल से आकर्षित लोगों और इस मॉडल से बाहर किए जा चुके लोगों के बीच की लड़ाई बन गया है.
वाराणसी: बीते सोमवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा के सात चरणों वाले चुनावी महामुकाबले का समापन हो गया, लेकिन वाराणसी में झोपड़पट्टीवासियों के एक समूह द्वारा किए गए छोटे से विरोध प्रदर्शन ने हिंदुस्तान के सबसे बड़े आबादी वाले सूबे की एक बड़ी सियासी तस्वीर हमारे सामने रख दी है.
केंद्र सरकार द्वारा स्मार्ट सिटी मिशन के तहत खिड़किया घाट से लेकर राजघाट के बीच के इलाके को पर्यटन के लिहाज से सुंदर और आकर्षक बनाने का फैसला लिया गया था. इसी फैसले के कारण अक्टूबर 2020 से दिसंबर 2020 तक करीब 100 परिवारों को खिड़किया घाट से विस्थापित होना पड़ा. इन विस्थापित परिवारों में ज्यादातर मल्लाह या नाविक परिवार हैं.
अहमदाबाद के साबरमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर घाटों के नवीनीकरण का उद्देश्य पर्यटकों को आकर्षित करना था. घाटों के नवीनीकरण और पुनर्विकास के इस काम का ठेका मेरठ की प्रीति बिल्डकॉन प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी को दिया गया है, लेकिन फिलहाल यह परियोजना तयशुदा समय से बेहद देरी से चल रही है.
इस पुनर्विकास परियोजना से जुड़े प्रचार अभियान और हो-हल्ले के बीच उन बेहद गरीब 100 परिवारों के घरों पर राज्य सरकार द्वारा बुलडोज़र चलाने की कार्रवाई को पूरी तरह अनदेखा कर दिया गया.