
उत्तर प्रदेश में ‘जब नगीचे चुनाव आवत है, भात मांगौ पुलाव आवत है’ का दौर शुरू हो गया है
The Wire
ऐसी परंपरा-सी हो गई है कि पांच साल की कार्यावधि के चार साढ़े चार साल सोते हुई गुज़ार देने वाली सरकारें चुनाव वर्ष आते ही अचानक जागती हैं और तमाम ऐलान व वादे करती हुई मतदाताओं को लुभाने में लग जाती हैं. बीते दिनों विधानसभा में योगी आदित्यनाथ द्वारा की गई लोक-लुभावन घोषणाएं इसी की बानगी हैं.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा चुनाव से ऐन पहले लाए गए सात हजार तीन सौ एक करोड़ रुपयों के वित्त वर्ष 2021-22 के पहले व अपने कार्यकाल के आखिरी अनुपूरक बजट पर विधानसभा में हुई चर्चा का जवाब देते हुए जो लोकलुभावन घोषणाएं की हैं, उनमें कुछ भी अप्रत्याशित नहीं है. हाल के दशकों में प्रदेश में परंपरा-सी बन गई है कि अपनी पांच साल की कार्यावधि के चार साढ़े चार साल सोती हुई गुजार देने वाली सरकारें चुनाव वर्ष आते ही अचानक जागती हैं और ‘जो मांगोगे, वही मिलेगा’ की तर्ज पर ऐलान और वादे करती हुई मतदाताओं को पटाने लग जाती हैं. अवध के लोकप्रिय शायर रफीक शादानी ने, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, कभी इसी पर तंज करते हुए कहा था, ‘जब नगीचे चुनाव आवत है, भात मांगौ पुलाव आवत है.’ इसलिए उनके इस कथन को सार्थक करते हुए योगी द्वारा स्नातक, परास्नातक व डिप्लोमा में दाखिला लेने वाले एक करोड़ छात्रों को डिजिटली सक्षम बनाने के लिए टेबलेट या स्मार्टफोन और प्रतियोगी छात्रों को भत्ता व छात्रवृत्ति वगैरह देने, माफियाओं से जब्त भूमि पर दलितों व गरीबों के घर बनवाने और साथ ही 28 लाख सरकारी कर्मचारियों व पेंशनधारकों, दस साल फील्ड कार्मिकों, युवाओं, वकीलों और कोरोना योद्धाओं के भत्तों, मानदेयों और निधियों वगैरह में वृद्धि के ऐलानों की आलोचना में सिर्फ यही कहा जा सकता है कि 2017 में समूची राजनीतिक संस्कृति बदल डालने के वायदे पर चुनकर आई सरकार के मुखिया के तौर पर चुनाव वर्ष में अचानक पिछली सरकारों की लकीर की फकीरी उनकी कार्यकुशलता से ज्यादा विवशता का ही परिचय दे रही है.More Related News