
उत्तर प्रदेश चुनाव: क्या धर्म-उन्माद व ध्रुवीकरण ही भाजपा का सहारा बनेगा
The Wire
अखिलेश यादव द्वारा किया गया जिन्ना का ज़िक्र भाजपा के लिए रामबाण-सा साबित हुआ है. अपराधों, महंगाई और बेरोज़गारी से उपजा असंतोष राज्य भाजपा सरकार के गले में फंदे की तरह लटका है. ऐसी सूरत में किसी न किसी बहाने हिंदू-मुस्लिम और जातीय ध्रुवीकरण पार्टी और योगी सरकार के लिए सबसे बड़ा हथियार है.
सरदार पटेल के जन्मदिवस 31 अक्टूबर को आयोजित कार्यक्रम में देश की आज़ादी की लड़ाई के संघर्ष में सरदार पटेल के साथ महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना के योगदान की एक ही रौ में की गई तारीफ़ समाजवादी पार्टी के गले पड़ गई. सपा प्रमुख अखिलेश यादव यह भूल गए कि जिन्ना का ज़िक्र उन्होने ऐसे मौके पर कर दिया, जब देश के सबसे बड़े प्रदेश- उत्तर प्रदेश (यूपी) के चुनाव सिर पर हैं. प्रचार अभियान शुरू हो चुका है तथा चुनावी जंग के लिए तरकश तैयार हो रहे हैं.
मार्च 2017 से यूपी में भारी जीत दर्ज करने के बाद से लेकर अब तक भाजपा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार के पूरे एजेंडा को घोर हिंदुत्व और हिंदू-मुस्लिम धार्मिक विभाजन के ढांचे से हरगिज बाहर नहीं निकालना चाहते. भले ही योगी सरकार के पास अपनी उपलब्धियों की सूची काफी लंबी हो, लेकिन भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान समूचे यूपी में भाजपा आलाकमान के लिए मुसीबत बन चुका है.
आम जनता पर भयावह आर्थिक मंदी का भारी असर है. भारी महंगाई और बेरोजगारी से उपजा असंतोष भाजपा सरकार के गले में फंदे की तरह लटका है. ऐसी सूरत में किसी न किसी बहाने हिंदू-मुस्लिम और जातीय ध्रुवीकरण भाजपा और योगी सरकार के समक्ष सबसे बड़ा हथियार है.
अखिलेश ने भले ही अनजाने में जिन्ना का ज़िक्र कर दिया लेकिन भाजपा के लिए यह नुस्खा रामबाण साबित हुआ. जिन्ना मामले पर अखिलेश पर तंज कसने में एआईएमआईएम प्रमुख व सांसद असदुद्दीन ओवैसी भी सामने आए जो यूपी में कुछ वर्षों से सक्रिय हैं और हर बार की तरह इस बार भी मुस्लिम वोट बैंक में विभाजन की गोटियां बिठा रहे हैं.