उत्तर प्रदेश: क्या आज़मगढ़ के पलिया गांव में दलितों को सबक सिखाने के लिए उनके साथ बर्बरता की गई?
The Wire
बीते 29 जून को उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ ज़िले के रौनापार के पलिया गांव के एक व्यक्ति से कुछ लोगों का विवाद हो गया था. मौके पर पहुंचे पुलिसकर्मियों पर भी कथित रूप से हमला कर दिया गया. आरोप है कि इसके बाद बदले की कार्रवाई करते हुए पुलिस ने इस दलित बाहुल्य गांव में प्रधान समेत कई घरों में जमकर तोड़फोड़ की और उन्हें गिरा दिया गया. पुलिस ने ग्रामीणों के इस आरोप से इनकार करते हुए अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया है.
आजमगढ़: ‘रात 8:30 बजे मैं दवा खाने जा रही थी. उसी वक्त खूब शोर होने लगा. अचानक बिजली चली गई और अंधेरा हो गया. घर के सभी लोग चिल्लाने लगे कि भाग जाओ, पुलिस आ गई है. मैं कुछ समझ पाती कि दर्जनों पुलिस वाले धड़धड़ाते हुए घुस गए. एक पुलिसवाले ने गाली देते हुए लोहे के राड से मेरे हाथ पर मारा. मैं चिल्लाने लगी. पुलिस वाले घर के हर सामान को तोड़ रहे थे. मैंने अपनी बहन का हाथ पकड़ा और घर के पीछे की तरफ भागी. उस रात को मैं कभी भूल नहीं पाऊंगी. लग रहा था कि घर में लुटेरे घुस गए हों. उस रात पुलिस नहीं लुटेरे आए थे.’ उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के रौनापार थानाक्षेत्र के दलित बाहुल्य पलिया गांव की 22 वर्षीय संध्या जब 29 जून की रात को पुलिस द्वारा की गई बर्बरता को बयां कर रही थीं तो उनकी आंख में समाया खौफ दिख रहा था. घटना के 10 दिन बाद ग्राम प्रधान मंजू पासवान, उनके पति मुन्ना पासवान के चचेरे भाई स्वतंत्र कुमार और चाचा राजपति के घर में हुई तोड़फोड़ को देख कर लगता है कि जैसे कि यहां कोई भूकंप आया हो, जिसने सब कुछ तहस-नहस कर दिया है. पलिया गांव एक पखवाड़े से अधिक समय से ग्राम प्रधान मंजू पासवान और उनके तीन परिजनों के घरों में कथित तौर पर पुलिस द्वारा किए गए व्यापक तोड़फोड़, महिलाओं के साथ अभद्रता और मारपीट की घटना को लेकर चर्चा के केंद्र में है.More Related News