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ईडी की अति सक्रियता का राज़ क्या है?
The Wire
ईडी ने अपना दायरा बढ़ाने के लिए एजेंसी द्वारा 2020 में जारी एक सर्कुलर को सीढ़ी बनाया है, जिसका मक़सद इसकी भूमिका को परिभाषित करना था. हालांकि इससे ईडी निदेशक को कई ऐसे अधिकार मिलते हैं, जिससे वे एक तरह से ऐसे किसी भी व्यक्ति को अपने शिकंजे में ले सकते हैं, जिसमें सरकार की दिलचस्पी हो.
नई दिल्ली : 18 जून, 2018 को रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के तत्कालीन प्रमुख ने अपने बॉस कैबिनेट सचिव के सामने एक असामान्य प्रेजेंटेशन दिया. रॉ प्रमुख को इसी समय प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की तरफ से शारदा घोटाले में शामिल कोलकाता के एक टेलीविजन चैनल की मदद से कथित मनी लॉन्ड्रिंग के लिए कारण बताओ नोटिस थमाया गया था. भारत की इंटेलिजेंस एजेंसी के अधिकारी इससे सकते में आ गए थे. यह न सिर्फ एक दूसरी सरकारी एजेंसी द्वारा एक गैर जरूरी हस्तक्षेप था, बल्कि इस नोटिस से रॉ के एक तत्कालीन ऑपरेशन पर भी खतरा पैदा हो गया था. इस संकट को टालने के लिए खुद प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा.
द वायर को इस बात की जानकारी मिली है कि इस घटना के डेढ़ साल बाद एजेंसी ने 13 फरवरी, 2020 को एक ‘टेक्निकल सर्कुलर’ जारी किया. इस सर्कुलर के पीछे का तर्क इसके द्वारा हाथ में लिए जाने वाले मामलों के चयन में ‘एकरूपता सुनिश्चित करना’ था, लेकिन इसमें ईडी के दायरे या गतिविधियों को सीमित या उस पर अंकुश लगाने की कोई बात नहीं की गई थी. इसने और कुछ नहीं, वास्तव में ईडी निदेशक की शक्तियों में इजाफा करने का काम किया.
आधिकारिक तौर पर इस टेक्निकल सर्कुलर के प्रावधानों के पीछे का तर्क बताने के लिए कहे जाने पर ईडी ने ऐसे किसी सर्कुलर के वजूद को ही नकार दिया. हालांकि, द वायर के पास दस्तावेज की एक प्रति मौजूद है.
इस सर्कुलर के अनुसार ईडी प्रमुख एक तरह से सर्वशक्तिमान हो गए हैं, क्योंकि वे कानून-व्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा, मामलों की विविधता, अपराधों की सीमापारीय प्रकृति, किसी मामले की जटिलता, आपराधिक कमाई की तलाश, व्यापक जनहित’ का ध्यान रखते हुए जांच का आदेश दे सकते हैं. इस तरह से ईडी प्रमुख एक तरह से किसी भी व्यक्ति को अपने शिकंजे में कस सकते हैं, जिसमें सरकार की दिलचस्पी हो.