
इलेक्शन में किनकी लगती है ड्यूटी, गायब रहने पर क्या कार्रवाई? वो 4 हालात जहां ड्यूटी में मिल सकती है छूट
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भारत में लोकसभा चुनाव करीब है. वोटिंग बगैर आपाधापी के हो सके, इसके लिए सरकार भारी संख्या में चुनाव कर्मियों की ड्यूटी लगाती है. ये स्कूल टीचर भी होते हैं, और सरकारी बैंकों, अस्पतालों में काम करने वाले भी. एक बार ड्यूटी लगने के बाद उससे पीछे हटने का रास्ता कुछ ही हालातों में रहता है. जानिए, कौन कर सकता है इलेक्शन ड्यूटी करने से इनकार.
लोकसभा चुनाव को कुछ ही वक्त बचा है. चुनाव कराने की जिम्मेदारी इलेक्शन कमीशन की है. वो देखता है कि सारे काम सही वक्त पर और सही ढंग से हों. लेकिन उसके अधिकारी थोड़े हैं, और बड़ी जिम्मेदारियां ही देख सकते हैं. ऐसे में राज्यों, जिलों और गांव-गांव तक इलेक्शन को देखने-भालने के लिए एक पूरी फौज चुनी जाती है. ये कर्मी अलग-अलग सरकारी विभागों से लिए जाते हैं.
मतदान दलों में पीठासीन अधिकारी और मतदान अधिकारी, सेक्टर और जोनल अधिकारी, माइक्रो-ऑब्जर्वर से लेकर इलेक्शन के दौरान इस्तेमाल होने वाली गाड़ियों के चालक, कंडक्शन जैसे बहुत सारे लोग शामिल होते हैं. एक बार चुनाव में किसी की ड्यूटी लग जाए तो बगैर सूचना उसका गायब रहना गंभीर लापरवाही की श्रेणी में आता है.
किनकी ड्यूटी लगती है इलेक्शन कमीशन इस काम के लिए सबकी ड्यूटी नहीं लगा देता. केवल उनकी ही ड्यूटी लगती है जो सेंटर या स्टेट के स्थाई कर्मचारी हों. अगर ज्यादा संख्या में जरूरत पड़े तो डेप्युटेशन पर रहते अधिकारियों को भी जिम्मा मिलता है. वोटिंग का काम संभालने में टीचर, इंजीनियर, क्लर्क, अकाउंटेंट, प्रशासनिक और सपोर्ट टीम शामिल हैं. सरकारी लैब और अस्पताल कर्मचारी भी ड्यूटी पर रहते हैं.
किनकी ड्यूटी नहीं लगाई जा सकती ऐसे कर्मचारी जो सरकारी संस्थानों में तो हैं, लेकिन कॉन्ट्रैक्ट पर, या फिर दैनिक वेतनभोगी हों, उन्हें ये जिम्मा नहीं दिया जाता. सरकारी कर्मचारियों को जिम्मा मिलता है क्योंकि वे सरकार के कंट्रोल में रहते हैं. लोकसभा चुनाव आमतौर पर 45 से 90 दिन तक चल सकते हैं. इतने समय के लिए ये सरकारी कर्मचारी इलेक्शन कमीशन के लिए तैनात रहते हैं. अगर पति-पत्नी दोनों ही सरकारी काम करते हों, तो उनमें से एक बच्चों या बुजुर्ग पेरेंट्स की देखभाल के लिए ड्यूटी हटवाने की गुजारिश कर सकता है.
कितनी हो सकती है सजा

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